अमृत महोत्सव: आदिम जनजाति बहुल हुसंबू में बिजली पानी व रोड नहीं, घर में जलती है ढिबरी Newshindi247

अमृत महोत्सव: आदिम जनजाति बहुल हुसंबू में बिजली पानी व रोड नहीं, घर में जलती है ढिबरी Letest Hindi News
महुआडांड़11 घंटे पहलेलेखक: तनवीर अहमद
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आदिम जनजाति के लिए बनाया गया बिरसा आवास हो गया जर्जर।
देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है लेकिन इन सबके बावजूद नेतरहाट का हुसंबू गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं। लगभग 300 की जनसंख्या वाले इस गांव के घरों की संख्या 60 है, गांव में दो टोला है जिसमे धोड़ीकोना टोले में आदिम जनजाति असुर 28 परिवार निवास करते हैं वहीं हुसंबू आदिवासी बहुल क्षेत्र है।
गांव में पहुंचने हेतु मुख्य सड़क से लगभग 5 किमी तक कच्ची सड़क होकर आना पड़ता है और वह भी काफी जर्जर है।गांव के एकमात्र प्राथमिक विद्यालय में एक शिक्षक के भरोसे 48 बच्चे नामांकित हैं। ग्रामीणों को पीने के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं है। हालांकि नल जल योजना के तहत असुर बहुल धोड़ीकोना टोला में दो जलमीनार और पंद्रहवें वित्त से एक जलमीनार लगाई गई है जिससे कभी पानी सप्लाई हुआ ही नहीं। सोलर एनर्जी एवं मोटर के माध्यम से घरों तक पेयजल आपूर्ति का लक्ष्य था,जो हाथी का दांत साबित हुआ है।
शायद फाइल में ही इसके द्वारा आदिम जनजाति और आदिवासियों के घरों तक पानी पहुंच रहा होगा।लेकिन जमीन की हकीकत इससे परे है और ग्रामीण चुआं से पानी पीने को मजबूर हैं। इस संबंध में ग्राम प्रधान लाजरूस लकड़ा, ग्रामीण अजय असुर, जोगेंद्र असुर, सावन असुर, कुलदीप असुर,लक्ष्मण असुर,कांति असुर,राजू असुर,किशुन असुर ने बताया कि जलमीनार बना कर सिर्फ खाना पूर्ति की गई है,आज तक हमें इससे कभी पानी नहीं मिला है।
गांव में शौचालय बनाने के नाम पर भी सिर्फ खानापूर्ति की गई और गांव को ओडीएफ (ओपेन डेफिकेसन फ्री यानी खुले में शौच मुक्त) घोषित कर दिया गया है।लेकिन अब भी ग्रामीण शौच के लिए खेतों या जंगल में जाते है। सबसे दुखद पहलू यह है कि गांव या आसपास के किसी गांव में स्वास्थ्य केन्द्र नहीं है, जिसकी वजह से खासकर गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए काफी सोचना पड़ता है। अत: सामान्यत: उनका प्रसव पारंपरिक तौर पर गांव की कोई बुजुर्ग महिला करवाती है, जिसमें कभी-कभी बच्चा व जच्चा के लिए काफी खतरनाक स्थिति बन जाती है।
कभी-कभी तो दोनों की भी जान चली जाती है। ऐसे में कई महिलाएं सुरक्षित प्रसव के लिए मायके या किसी रिश्तेदार के पास चली जाती हैं, जहां अस्पताल और शौच की सुविधा रहती है। ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें सरकार द्वारा आखिरी बार 2005–06 में सरकार की ओर से बिरसा आवास मिला था जो अब जर्जर हो गया है, पीएम आवास भी नही मिला।हमारे लिए मुख्यमंत्री डाकिया योजना ही एक मात्र सहारा है।
क्षेत्र की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि खेती भी नहीं के बराबर होती है क्योंकि सिंचाई का कोई साधन नहीं है।कई युवक युवती गांव छोड़कर केरल, दिल्ली या अन्य राज्यों में कमाने चले गये हैं।वही जो गांव में बच गए है वह हिंडाल्को माइंस में मजदूरी कर अपना गुजारा करते है। हुसंबू गांव के धोड़ीकोना टोले में जर्जर भवन में आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित है,जिससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।आंगनबाड़़ी केन्द्र की फर्श, छत और दीवारें टूट गई हैं।
इस संबंध में आंगनबाड़ी सेविका जसिंता टोप्पो ने बताया कि इस आंगनबाड़ी केंद्र में नवाटोली, पकरीपाठ,हुसंबु और धोड़ीकोना के 20 बच्चे नामांकित हैं, आंगनबाड़ी केंद्र का खुद का भवन नहीं रहने के कारण मजबूरन स्कूल के पुराने जर्जर भवन में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित करना पड़ रहा है। मैंने इसकी जानकारी विभाग को दे दी है कि भवन क्षतिग्रस्त होने से कभी भी दुर्घटना हो सकती है।
विलुप्त हो रही 196 भाषाओं में असुर भी
नेतरहाट पंचायत का हुसंबू गांव असुर आदिम जनजाति बहुल क्षेत्र है। लोगों को विश्वास है कि असुर जाति के द्वारा ही सर्वप्रथम संसार को लोहा से परिचित कराया गया। हालांकि धीरे धीरे नई पीढ़ी इस कार्य को भूल गई।इनकी असुर भाषा भारत की 196 लुप्त हो रही भाषा में शामिल हैं।
यूनेस्को की वर्ल्ड एटलस ऑफ एंडेंजर्ड लैंग्वेज के अनुसार असुर भाषा डेफिनेटली एंडेंजर्ड कैटेगरी में है।ऐसे में इस समुदाय को संरक्षित करने हेतु सरकार कई योजनाएं चलाती हैं लेकिन वह योजनाएं धरातल पर उतर नही पाती। शायद इन्हीं सब कारणों से आज भी यह गांव पिछड़ा हुआ है ।
Post Credit :- www.bhaskar.com
Date :- 2023-03-18 22:30:00