- Hindi News
- Career
- How Important Is The Governor’s Interference In The Cabinet, Read The Hindu Editorial Of November 20
अब तक की कहानी
तमिलनाडु गवर्नर आर.एन रवि ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित किये गए कुछ विधेयकों (बिल) को रोक दिया है। इन विधेयकों पर गवर्नर ने ‘गंभीर चिंता’ जाहिर की थी, जिसके बाद ये फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी सहमति के लिए लाया गया है। कोर्ट ने कुछ मामलों में, तेलंगाना, पंजाब और केरल के गवर्नरों द्वारा की गई देरी पर भी नाराजगी जाहिर की है।
गवर्नर को राज्य विधान सभा (State Legislative Assembly) की सहमति से जब कोई विधेयक दिया जाता है, तो उसके पास क्या विकल्प होते हैं? क्या गवर्नर के पास विवेक से अपनी शक्तियों का उपयोग करने का अधिकार है, क्या वो इसका उपयोग कर सकता है? इसे लेकर सरकारिया और पुंछी आयोग की क्या सिफारिशें रही हैं?
क्या कहता है संविधान?

सुप्रीम कोर्ट ने शमशेर सिंह केस (1974) के साथ ही कई अन्य केस में कहा था कि गवर्नर किसी विधेयक पर अपना मत रोकने, या उससे राज्य विधानमंडल को वापस भेजते समय अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं करते हैं। जबकि, उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार काम करना चाहिए।
राज्य विधानमंडल द्वारा पास किये गए किसी सदस्य विधेयक (यानी मंत्री के अलावा राज्य विधानमंडल का कोई भी सदस्य) के मामले में ‘सहमति को रोकने’ की स्थिति बन सकती है, जिसे मंत्रिपरिषद कानून के रूप में बनते नहीं देखना चाहती।
हालांकि, ये एक कभी न घटने वाली स्थिति है, क्योंकि विधानसभा में मंत्री बहुमत में होते हैं और वे इस तरह के विधेयक कभी पास नहीं होने देना चाहते ।
वहीं, दूसरा यदि सरकार, जिसका विधेयक, विधायिका द्वारा पारित किया गया है और उसके पास होने से पहले ही यदि सरकार गिर जाती है या किसी वजह से रिजाइन कर देती है, तो नई सरकार गवर्नर को ‘अनुमति रोकने’ की सलाह दे सकती है।
किसी भी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानमंडल में वापस मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही भेजा जा सकता है। हालांकि, इतिहास में देखें तो, गवर्नर ने विधेयकों को लौटाने में अपनी समझ का ही उपयोग किया है।
जैसे तमिलनाडु गवर्नर ने ऑनलाइन गैम्बलिंग पर रोक लगाने वाले विधेयक के संबंध में किया था। हालांकि, यदि ऐसा विधेयक राज्य विधानमंडल द्वारा दोवारा पारित किया जाता है, तो राज्यपाल को उस पर सहमति देना होता है।
गवर्नर को कुछ विधेयक को बचाकर रखना होता है। जैसे कि हाई कोर्ट की शक्तियों को कम करने वाले विधेयक, ‘राष्ट्रपति के विचार’ के लिए बचाकर रखना चाहिए। इसके अलावा वे केन्द्रीय कानून (यूनियन लॉ) के आधार पर मंत्रिपरिषद से सलाह कर उन विधेयकों को किसी लिस्ट में रिजर्व कर रख सकते हैं।

क्या थीं सिफारिशें?
सरकारिया कमीशन (1987) ने रिपोर्ट में बताया है कि ये सिर्फ संवैधानिकता के दुर्लभ मामलों में ‘राष्ट्रपति के विचार’ के लिए विधेयकों को रिजर्व करता है, जहां राज्यपाल के विवेक की शक्ति को माना जाता है।
इन कुछ विशेष परिस्थितियों के अलावा, गवर्नर आर्टिकल 200 के अंतर्गत मंत्रियों की सलाह पर अपने कर्तव्य को करना चाहिए। इसने आगे सिफारिश की कि राष्ट्रपति को अधिकतम छह महीने की अवधि के अंदर ऐसे विधेयकों का फैसला कर देना चाहिए।
राष्ट्रपति द्वारा अनुमति रोके जाने के मामले में, जहां तक हो सके राज्य सरकार को इसके विषय में सूचना दी जानी चाहिए। पूंछी कमीशन (2010) ने सुझाया था कि गवर्नर को उनकी सहमति के लिए भेजे गए विधेयक के संबंध में छह महीने के भीतर जवाब देना चाहिए। हालांकि, इन सिफारिशों को आज तक लागू नहीं किया जा सका है।
इस गतिरोध को कैसे दूर किया जा सकता है?
पहले कई बार सी.एन.अन्नादुराई से लेकर नीतीश कुमार तक कई नेताओं ने गवर्नर पद को खत्म करने की मांग की। हमारी इस व्यवस्था को प्रभावित करने वाली बीमारी गवर्नर पद का राजनीतिकरण है।
हालांकि, संविधान के अनुसार हमारी मंत्रिपरिषद को राष्ट्रपति की जिस तरह जरूरत है, उसी तरह राज्यों को गवर्नर की जरूरत है। संघवाद हमारे संविधान की एक बुनियादी विशेषता है और गवर्नर को, राज्यों में निर्वाचित सरकारों की शक्तियों को कमजोर नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा, गवर्नर केंद्र के एक जरूरी व्यक्ति के रूप में काम करता है और जरूरी समय में राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम होता है। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गवर्नर और मुख्यमंत्री को थोड़ा आत्ममंथन की जरूरत है। संविधान में ये प्रावधान करने के लिए बदलाव किया जा सकता है, कि गवर्नर को अपॉइंट करने से पहले मुख्यमंत्रियों से सलाह ली जाए।
पुंछी आयोग की इस सिफारिश पर भी विचार किया जा सकता है कि गवर्नर को राज्य विधानमंडल द्वारा महाभियोग के द्वारा हटाया जा सकता है। यह राज्य विधानमंडलों को सहयोग नहीं करने वाले गवर्नर को हटाने की शक्ति प्रदान करेगा।
इन संशोधनों का केंद्र और राज्य सरकारों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप गवर्नर की अपॉइंट और कामकाज के मामलों में जिम्मेदार सहयोग मिलेगा।
लेखक: रंगराजन आर। एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। वह वर्तमान में ‘ऑफिसर्स आईएएस अकादमी’ में सिविल सेवा के उम्मीदवारों को प्रशिक्षण देते हैं। उन्होंने सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए ‘पॉलिटी सिम्प्लीफाईड’ पुस्तक लिखी है।
Source: The Hindu
Post Credit : – www.bhaskar.com