नई दिल्ली. एक्टिंग की दुनिया के जाने माने अभिनेता बिश्वजीत चटर्जी (Biswajit Chatterjee) ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत बांग्ला फिल्मों से की. इसके बाद साल 1962 में आई फिल्म ‘बीस साल बाद’ से उन्होंने हिंदी फिल्मों में काम करना शुरू किया. अपने दौर में वह बिश्वजीत का जादू दर्शकों पर ऐसा चला कि वर देखते ही देखते स्टार बन गए. लेकिन एक छोटी सी गलती ने उनका बना बनाया करियर बर्बाद कर दिया था. आइए जानते हैं क्या है पूरा किस्सा.
बिश्वजीत चटर्जी ने अपने एक्टिंग करियर में कई बेहतरीन किरदार निभाए हैं. उन्होंने फिल्म कोहरा में राजा अमित कुमार सिंह, अप्रैल फूल में अशोक, मेरे सनम में रमेश कुमार, नाइट इन लंदन में जीवन, दो कलियां में शेखर और फिल्म किस्मत में विक्की जैसे यादगार कई ऐसे यादगार किरदार निभाए हैं जो लोगों के जहन में बस गए थे उनकी उन किरदारों को दर्शक आज भी नहीं भूल पाए हैं. अपने जमाने में उनकी जोड़ी आशा पारेख, वहीदा रहमान, मुमताज, माला सिन्हा और राजश्री जैसी उस दौर की कई दिग्गज अभिनेत्रियों संग काफी पसंद की जाती थी.
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बंगाली होने के बाद भी हिंदी फिल्मों में छा गए
बिस्वाजीत के पिता आर्मी में डॉक्टर थे. वह नहीं चाहते थे कि उनका बेटा एक्टर बने. लेकिन बिस्वाजीत शुरुआत से ही थिएटर करते आ रहे थे. महज दस साल में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत कर दी थी. वह बंगाली फिल्मों में काम करने लगे. उनकी एक बंगाली फिल्म काफी पॉपुलर हुई थी. इसके बाद उन्होंने हिंदी फिल्मों की ओर रुख किया. बगाली होते हुए भी बिस्वाजीत चटर्जी की हिंदी भाषा पर भी अच्छी पकड़ थी. एक्टिंग की दुनिया में तो उनकी तूती बोलती थी. अपनी फिल्मों के दम पर उन्होंने इंडस्ट्री में अलग जगह बनाई थी. दर्शक उन्हें किंग ऑफ रोमांस के नाम से भी पहचानने लगे थे.
एक गलती पर बर्बाद हुआ करियर
70 के दशक में बिश्वजीत चटर्जी की फिल्मों में उनके रोमांम को देख दर्शक उनके मुरीद हो गए थे. ये वो समय था जब उनका करियर पीक पर था. ये वो समय था वह जिस फिल्म में हाथ डालते वह सुपरहिट हो जाती थी. वह जिस गाने में नजर आते थे वो सदाबहार बन जाता था. उन्हें अब यकीन हो गया था कि वह जो भी काम करेंगे वो लोगों को जरूर पसंद आएगा. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इसी समय में उनके एक दोस्त ने उन्हें एक्टिंग के अलावा प्रोड्यूसर बनने की सलाह दे डाली. एक्टर ने ये बात मानी और अपना कमाया पैसा अपनी फिल्मों में लगाया भी. बिस्वजीत ने साल 1975 में अपनी फिल्म ‘कहते हैं मुझको राजा’ का निर्माण और निर्देशन किया. अभिनेता एवं निर्देशक के अलावा वह एक गायक और निर्माता भी रहे हैं. लेकिन उनका ये डिसीजन उनके लिए गलत साबित हुआ. देखते ही देखते उनका करियर बर्बाद हो गया. इसके बाद उन्होंने दोबारा एक्टिंग में हाथ आजमाया लेकिन उन्हें दोबारा वो सफलता नहीं मिल सकी.
बता दें कि बिश्वजीत की कामयाबी में बहुत बड़ा योगदान उनकी फिल्मों के साथ-साथ उनकी फिल्मों के गानों का भी रहा. उनके कुछ सदाबहार गीतों ने तो लोगों को दीवाना बना दिया था. कहीं दीप जले कहीं दिल, नाज़ुक न बनो, पुकारता चला हूं मैं, कजरा मोहब्बत वाला जैसे उनके गाने आज भी लोग गुनगुनाते नजर आते हैं.