नई दिल्ली. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय फिल्म जगत दो भागों में विभाजित हुआ. 1947 से पहले बिना किसी दिक्कत के, खुश होकर मुस्लिम कलाकार फिल्मों में काम किया करते थे, लेकिन आजादी के बाद भारत का एक टुकड़ा अलग किया गया और फिर कुछ लोगों ने पाकिस्तान बसने का फैसला किया. कुछ कलाकारों की जगह खाली हुई, तो नए लोगों ने अपना नसीब आजमाने के लिए मायानगरी का रुख किया. इसमें ले कुछ कलाकार ऐसे भी थे, जिनका आजादी से पहले फिल्मी जगत से कोई लेना-देना नहीं था. नए भारत के निर्माण के बाद कुछ क्रांतिकारियों ने अपना रुख मुंबई की तरफ किया और फिल्मों में अपना भाग्य आजमाने का फैसला किया. इन कलाकारों में ए के हंगल, नासिर हुसैन जैसे नामी एक्टर्स शामिल हैं, लेकिन आज हम आपको ऐसे कलाकार के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनको आपने फिल्मों में तो कई बार देखा, लेकिन आप उनकी असल जिंदगी से वाकिफ नहीं हैं.
मनोज कुमार की ‘रोटी कपड़ा और मकान’ फिल्म में अभिनेत्री मौसमी चटर्जी के साथ दुर्व्यवहार करने वाले ‘लाला’ को तो आप शायद ही भूलेंगे. असल जिंदगी में यह ‘लाला’ यानी चंद्र शेखर दुबे क्रांतिकारी हुआ करते थे. स्क्रीन पर ‘कपटी’ और ‘कड़क मिजाजी’ दिखने वाले सीए साहब असल जिंदगी में बेहद ही दयालु हुआ करते थे.
शानदार आवाज के धनी थे दुबे साहब
ज्यादातर लोग इन्हें सीएस दुबे के नाम से जानते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें दुर्व्यवहार, झूठ-कपट जैसे किरदारों के लिए याद किया जाता है. उनका जन्म 4 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के कन्नोड के एक छोटे से शहर में हुआ था. बचपन से ही वह शानदार आवाज के धनी थे इसी वजह से आजीवन वह रेडियो से भी जुड़े रहे.
18 साल की उम्र में गए जेल
सीएस दुबे क्रांतिकारी विचारों के थे और देशभक्ति का जज्बा इन में कूट-कूट कर भरा था. महात्मा गांधी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तो यह भी सब कुछ छोड़कर आंदोलन में कूद गए. सिर्फ 18 साल की उम्र में ही इनकी गिरफ्तारी भी हो गई थी. बाद में जेल से छूटे तो मध्य प्रदेश छोड़ने का फैसला कर लिया और मुंबई चले आए. उन्होंने कभी अभिनेता बने के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन कहते हैं ना किस्मत में जो लिखा होता है वही होता है और इत्तेफाक से वह भी एक्टर बन गए.
ऑफिस बॉय से असिस्टेंट डायरेक्टर और फिर बने एक्टर
दरअसल, 1 दिन रहे मशहूर डायरेक्टर अमिया चक्रवर्ती से मिले. अमिया ने देखा और सेट पर उन्हें ऑफिस बॉय की नौकरी पर रख लिया, लेकिन दुबे अपनी काबिलियत से कुछ ही समय में असिस्टेंट डायरेक्टर बन गए. 1949 को बॉलीवुड में कदम रखने वाले अभिनेता नहीं 1953 में देव आनंद की फिल्म ‘पतिता’ की. इसी फिल्म से उन्होंने अपनी पहचान बनाई फिल्म में उनका ‘बिहू चाचा’ का रोल लोगों को काफी पसंद आया. उसके बाद 1955 में आई ‘सीमा’ फिल्म में भी उन्होंने ‘बांकेलाल’ का किरदार निभाया. वैसे अभिनेता का नैन नक्श ही कुछ ऐसा था कि फिल्मों में उन्हें में सिर्फ नेगेटिव रोल ही मिला करते थे. उनकी अदाकारी इतनी सच लगती थी कि उस दौरान के भोले-भाले लोग तो फिल्म में देखते हैं उनका गालियां देने लगते थे. उस दौर में कपटी पुजारी, धूर्त व्यापारी, भ्रष्ट मास्टर या सूदखोर लाला के लिए तो जैसे सीएस दुबे ही बने थे.
इत्तेफाक से सीएस दुबे एक्टर बने.
बड़े समाजसेवी थे सीएस दुबे
फिल्मों में इतने रोल करने वाले सीएस दुबे असल में बड़े समाजसेवी थे. वह फिल्मों की कमाई का कुछ हिस्सा गरीबों और उनकी पढ़ाई ऊपर खर्च किया करते थे. दुबे साहब वैसे खुद भी शादीशुदा थे और उनके खुद के तीन बच्चे थे. इनमें दो बेटे एक बेटी थी.
ये हैं उनकी यादगार फिल्में
उनकी कुछ यादगार फिल्में मिस्टर एंड मिसेस 55, कठपुतली, तीसरी कसम, खिलौना, रोटी कपड़ा और मकान, मैं तुलसी तेरे आंगन की और राम तेरी गंगा मैली है. इन फिल्मों ने ही सीएस दुबे को चरित्र अभिनेता के रूप में घर-घर फेमस कर दिया था
प्रेम चोपड़ा करते थे सीएस दुबे की नकल
कम लोग यह जानते हैं कि सीएस दुबे की एक्टिंग की नकल बाद में प्रेम चोपड़ा किया करते थे. अभिनेता से फिल्मी नहीं रेडियो की भी जानी पहचानी आवाज हुआ करते थे. रेडियो प्रोग्राम ‘हवा महल’ और ‘फौजी भाइयों’ में उन्होंने अपनी आवाज से सालों तक लोगों का मनोरंजन किया.
69 साल की उम्र में का दुनिया को अलविदा
इतने महान चरित्र अभिनेता की मौत 69 साल की उम्र में हो गई थी. उनकी मौत का स्पष्ट कारण आज तक मौजूद नहीं है, लेकिन कुछ जानकार कहते हैं कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, जिस वजह से 28 सितंबर 1993 को एक्टर की दुखद मौत हो गई थी.