1983 की ‘कल्ट क्लासिक’, रिलीज के बाद नहीं मिले दर्शक, चार्टेड अकाउंटेंट बन जाते डायरेक्टर

1983 की ‘कल्ट क्लासिक’, रिलीज के बाद नहीं मिले दर्शक, चार्टेड अकाउंटेंट बन जाते डायरेक्टर

नई दिल्ली.

नसीरउद्दीन शाह और शबाना आजमी स्टारर फिल्म ‘मासूम’ जब रिलीज हुई तो डायरेक्टर शेखर कपूर को अपने निर्देशन में बनी इस पहली फिल्म की सफलता की बड़ी उम्मीद थी. लेकिन हुआ इसके उलट ही फिल्म रिलीज हुई तो कोई फिल्म को देखने थिएटर तक नहीं पहुंचा. शेखर कपूर को लगा कि फिल्म फ्लॉप हो गई है और उन्होंने तो सोच लिया था कि अब वह चार्टेड अकाउंटेंट के तौर पर ही काम करेंगे. लेकिन बाद में ये फ्लॉप होती हुई फिल्म कैसे कल्ट क्लासिक बनी ये किसी करिश्मे से कम नहीं था.

डायरेक्शन अभिषेक कपूर ने साल 1983 में रिलीज हुई शबाना आजमी और नसीरउद्दीन शाह स्टारर फिल्म ‘मासूम’ से निर्देशन की दुनिया में कदम रखा था. लेकिन पहली ही फिल्म से उन्हें ये अहसास होने लगा था शायद ये उनके करियर पहली और आखिरी फिल्म साबित होगी. हद तो तब हुई जब डिस्ट्रिब्यूटर्स ने भी सिनेमा घरों से फिल्म को हटाने की बात करना शुरू कर दिया था इसके बाद तो शेखर कपूर ने चार्टेड अकाउंटेंट बनने के बारे में सोच लिया था. थिएटर्स को खाली देखकर उनका सपना तकरीबन टूट ही गया था. लेकिन रिलीज के एक हफ्ते बाद फिल्म ने रफ्तार पकड़ी और फिल्म ‘कल्ट क्लासिक’ साबित हुई.

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ओपनिंग डे में खाली थे सिनेमाघर

शेखर कपूर ने खुद अपनी इस फिल्म के बारे में अपने एक इंटरव्यू में बताते हुए कहा, ‘मुझे आज भी याद है मैं रिलीज होते ही ये फिल्म देखने गया था और सिनेमा हॉल बिल्कुल खाली था. सिर्फ दूर कहीं एक कपल बैठा था, उन्हें देखकर लग रहा था कि उन्हें भी फिल्म में कोई रूचि नहीं थी.’ ये बात शुक्रवार की है. शनिवार को भी यही हुआ. रविवार को भी. फिर सोमवार और मंगलवार को थिएटर्स खाली रहे. डिस्ट्रिब्यूटर्स ने कॉल किया और कहा कि वह शनिवार को थियेटर्स से फिल्म को हटा रहे हैं.’डिस्ट्रिब्यूटर्स ने ने उन्हें कहा कि फिल्म आपने अच्छी बनाई है लेकिन दर्शक नहीं आ रहे हैं इसलिए थियेटर के मालिक फिल्म हटाना चाहते हैं.’

जब टूटने लगा था डायरेक्टर बनने का सपना

वो एक ऐसा समय था जो शेखर कपूर के लिए काफी मुश्किल भरा था डिस्ट्रिब्यूटर्स की बातें सुनकर शेखर कपूर को लगा कि उनके निर्देशक बनने का सपना अब टूटने ही वाला है. उस दिन हिल रोड पर जाकर उन्होंने काफ़ी चाट खाई. क्योंकि कहा जाता है कि शेखर कपूर के दो ही पैशेन हैं- फिल्म बनाना और चाट खाना. अपनी बात आगे रखते हुए डायरेक्टर ने कहा, ‘अगले दिन मेरे अंकल विजय आनंद, जो कि मशहूर डायरेक्टर रहे उन्होंने फोन करके कहा, शेखर, मेरे लिए कुछ टिकट्स का जुगाड़ कर दो. फिल्म हाउस फुल जा रही है. ये बात गुरुवार की है, मैं उसी वक्त थिएटर पहुंचा और देखा कि लंबी लाइनें लगी हैं.’

कपूर को आज तक नहीं पता चला कि बुधवार और गुरुवार के बीच क्या बदला. उन्होंने कहा कि अगर गुरुवार को लोग थियेटर नहीं जाते तो ‘मासूम’ नहीं बचता और वो वापस चार्टेड अकाउंटेंट बन जाते.

बता दें कि शेखर कपूर की इस फिल्म का शुक्रवार और शनिवार…रविवार…सोमवार और फिर मंगलवार तक यही हाल रहा. लेकिन गुरुवार को अचानक ऐसा क्या बदला जो वहां हाउसफुल हो गया ये बात खुद शेखर कपूर भी आज तक नहीं जान पाए हैं. अपनी बात रखते हुए आखिर में शेखर कपूर ने बताया कि अगर गुरुवार को लोग थिएटर्स नहीं पहुंचते, तो मासूम फिल्म नहीं बचती और उन्हें फिर से बतौर चार्टेड अकाउंटेंट काम शुरू करना पड़ जाता.’

hindi.news18.com

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