नई दिल्ली. कहते हैं वक्त सबका आता है और 1970 में वो वक्त उस स्टार का आया, जिन्होंने काफी मेहनत से फिल्म इंडस्ट्री में सफलता पाई थी. उनकी मेहनत और शख्सियत का जादू दर्शकों के सिर चढ़कर ऐसा बोला कि वह हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार बन गए. लेकिन कहते हैं कि अक्सर लोकप्रियता मिलते ही लोग भहक जाते हैं. ऐसे ही कुछ राजेश खन्ना के साथ हुआ. काका ने एक के बाद एक 15 हिट फिल्में दीं और एक वक्त ऐसा भी आया, जो अपना स्टारडम देख वह खुद को भगवान के बराबर मानने लगे थे.
एक दौर में राजेश खन्ना ने अपना रुतबा ऐसा बना लिया था कि फिल्ममेकर्स उन्हें मुंहमागी रकम देने के लिए तैयार हो जाते थे. क्योंकि वो ये जानते थे कि राजेश पर पैसा लगाने का मतलब फिल्म रिलीज होते ही मालामाल हो जाना है. 1990 में राजेश खन्ना ने उस सटीक क्षण को याद किया जब उन्हें खुद का स्टारडम महसूस होने लगा था. क्यों डिंपल कपाडिया को लगने लगा था कि राजेश खन्ना पागल होने लगे हैं. ये है वो सालों पुरानी कहानी, जो काका ने खुद बयां की था. चलिए बताते हैं आपको…
जब खुद को भगवान के बराबर समझने लगे थे काका
राजेश खन्ना को लोग भले ही अहंकारी और समय का ख्याल नहीं रखने वाला एक्टर मानते हो, लेकिन वह दिल के बहुत साफ भी थे. सालों पहले मूवी मैग्जीन को दिए एक इंटरव्यू में राजेश खन्ना ने अपनी सफलता और असफलता के दिनों को बयां किया था. अपने तूफानी स्टारडम के बाद मिली नाकामी को याद करते हुए कबूल किया था, ‘मैं अपने आप को भगवान के बराबर समझने लगा था. मुझे अब भी वो पल याद है जब मुझे अंदाजा हुआ कि जबरदस्त सफलता आपको किस तरह हिला कर रख देती है….अगर आप पर इसका असर नहीं होता तो आप इंसान नहीं हैं.’
स्टारडम देख जब नहीं हो रहा था विश्वास
उन्होंने कहा ये फिल्म ‘अंदाज’ के ठीक बाद, बैंगलोर में विधानसभा में आयोजित लॉटरी ड्रा में हुआ था. उन्होंने कहा, मुझे याद है कि ‘अंदाज’ का प्रीमियर वहां आयोजित किया गया था और वहां उनका स्वागत करने वालों का सैलाब उमड़ पड़ा था. जबकि शम्मी कपूर फिल्म के स्टार थे. उन्होंने कहा- पूरी सड़क पर, जो न केवल चौड़ी थी, बल्कि लगभग दस मील लंबी थी, किसी की शक्ल नहीं बस सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे. मुझे ऐसा लग रहा था कि वो रोमन साम्राज्य का कोई स्टेडियम है. वो मंजर देखकर मैं बच्चों की तरह रो पड़ा था.
असफलता का पहला स्वाद
इसके बाद काका ने उस पल को भी याद किया, जब उनकी फिल्मों ने काम करना बंद कर दिया था. उन्होंने कहा कि नाकामी की ठोकर लगी तो मैंने शराब का सहारा लेनी शुरू कर दिया. एक रात मैंने चिल्लाना शुरू कर दिया. मैं कोई सुपर इंसान तो नहीं हूं, ईसा मसीह नहीं हूं और न ही महात्मा गांधी. शराब पीते-पीते सुबह से 3 बज गए और उस दिन मैंने बहुत ज्यादा हो गया था, क्योंकि यह मेरी असफलता का पहला स्वाद था.
जब डिंपल ने समझा, मैं पागल हो गया हूं
ये राजेश खन्ना के करियर का वह दौर था जब उनकी एक के बाद एक सात फ्लॉप फिल्में आईं. उन्होंने बताया कि एक के बाद एक लगातार सात फिल्में फ्लॉप हो गईं. एक रात बारिश हो रही थी, घुप अंधेरा था और मैं अपनी छत पर अकेले होने के कारणअपना नियंत्रण खो दिया. मैं चिल्लाया. ‘परवरदिगार, हम गरीबों का इतना सख्त इम्तिहान न ले कि हम तेरे वजूद को इंकार कर दे.’ ये सुनते ही डिंपल और मेरा स्टाफ यह सोचकर दौड़े कि मैं पागल हो गया हूं. ऐसा इसलिए था क्योंकि सफलता ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं असफलता को बर्दाश्त नहीं कर सका.
फिर लौटा नहीं राजेश खन्ना का स्टारडम
राजेश खन्ना ने 1980 के दशक में फिल्मों में काम करना जारी रखा, लेकिन 1970 के दशक की शुरुआत के विपरीत, अब उनकी फिल्में उतनी बड़ी या सफल नहीं थीं. ‘अवतार’, ‘स्वर्ग’ जैसी फिल्में अब उनके लिए दुर्लभ थीं.