नई दिल्ली: एक्ट्रेस जुबैदा बेगम (zubeida Begum) और महाराजा हनवंत सिंह (Maharaja Hanwant Singh) कहने को एक प्लेनक्रैश में मारे गए थे, लेकिन कुछ लोग उनकी मौत को साजिश करार देते हैं. एक्ट्रेस की जिंदगी पर बनी साल 2001 की फिल्म ‘जुबैदा’ में उनकी मौत की वजह कुछ और बताई गई, जिसकी कहानी उनके बेटे खालिद मोहम्मद ने लिखी है. उनकी मौत का रहस्य आज भी जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस की चार-दीवारी के पीछे कैद है, जहां लोगों को आज भी उनकी मौजूदगी का आभास होता है.
जुबैदा के पिता उनके फिल्मों में आने के सख्त खिलाफ थे, जबकि वे खुद एक स्टूडियो के मालिक थे और उनकी एक एक्ट्रेस से गहरी दोस्ती भी थी, जिसे जुबैदा आंटी कहती थीं. बेटी ने किसी तरह चोरी-छिपे ‘उषा किरण’ में काम किया, लेकिन फिल्म उनके पिता के दबाव में कभी रिलीज नहीं हो पाई. जुबैदा के पिता बेटी के सभी निर्णय खुद लेते थे. एक्ट्रेस के न चाहते हुए भी उनकी शादी करवाई और जब बेटी के ससुराल पक्ष से रिश्ता बिगड़ा, तो यहां भी जबरदस्ती करके बेटी का तलाक करवा दिया.
पिता लेते थे बेटी से जुड़ा हर फैसला
जुबैदा पिता के सख्त रवैये की वजह से घर में कैद रहने लगीं. बेटे के साथ से ही उनके दिल को सुकून मिलता था. जुबैदा की आंटी उनकी उदासी दूर करने के लिए, उन्हें बहाने से पार्टियों में ले जाती थीं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जुबैदा एक बार अपनी आंटी के साथ जोधपुर की शाही शादी में बाराती बनकर पहुंचीं. जुबैदा ने वहां अपनी मर्जी से जब गाना गाया, तो हर कोई उनकी खूबसूरती और आवाज पर फिदा हो गया. महफिल में मारवाड़ रियासत के महाराजा हनवंत सिंह मौजूद थे.
फिल्म ‘जुबैदा’ की कहानी जुबैदा बेगम के बेटे खालिद मुहम्मद ने लिखी है. (फोटो साभार: Instagram@ind.igenous)
जब पहली बार जुबैदा से मिले महाराजा हनवंत सिंह
महाराजा हनवंत सिंह पर जुबैदा की मौजूदगी का जादू सा असर हुआ. दोनों के बीच कुछ बातचीत हुई. जुबैदा को बारात के साथ लौटना था, लेकिन रास्ते में उनकी तबीयत बिगड़ी, तो वे महाराजा हनवंत सिंह की मेहमान बनकर वापस जोधपुर आ गईं. बीमारी एक बहाना था, जो दोनों को इश्क की राह में ले आई. जुबैदा महाराजा का दिल चुराकर मुंबई लौट आईं, वहां महाराजा उनकी याद में तड़पने लगे. उन्होंने अपने करीबी की मदद से मुंबई में उनका पता लगवाया.
एक दिन महाराजा हनवंत सिंह, जुबैदा के घर पहुंच गए और उनकी मां से बेटी का हाथ मांगा. एक मुस्लिम लड़की से एक महाराजा की शादी बड़ी मुश्किल बात थी, दूसरा उनकी पहले ही राजकुमारी कृष्णा कुमारी से शादी हो चुकी थी. जुबैदा की मां नहीं चाहती थी कि बेटी धर्म बदलकर दूसरी औरत की सौतन बने. हालांकि महाराजा हनवंत सिंह के काफी मनाने के बाद, जुबैदा की मां मान तो गईं, लेकिन शर्त रख दी कि बेटा खालिद मोहम्मद उनके साथ ही रहेगा.
जुबैदा को जब बेटे खालिद मोहम्मद से जाना पड़ा दूर
जुबैदा ने न चाहते हुए अपने 2 साल के बेटे को मां के पास छोड़ा और सबकुछ छोड़कर महाराजा के साथ जोधपुर आ गईं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जुबैदा ने धर्म बदला और आर्य समाज के अनुसार 17 दिसंबर 1950 को महाराजा से शादी कर ली, लेकिन शाही घराना उन्हें बहू के तौर पर कभी स्वीकार नहीं कर पाया. उनके साथ गैरों सा बर्ताव हुआ. वे महाराजा के बेटे राव राजा हुकुम सिंह की मां बनीं, दूसरी ओर महाराज आजादी के बाद चुनाव मैदान में उतर गए थे. वे चुनाव प्रचार में महारानी कृष्णा कुमारी के साथ जाते थे.
महाराजा हनवंत सिंह और जुबैदा की प्लेन क्रैश में हुई मौत
26 जनवरी 1952 का दिन था, महाराजा एक शहर जरूरी काम से निकलने वाले थे, जुबैदा ने जिद्द पकड़ ली कि वे भी उनके साथ चलेंगी, चूंकि एयरक्राफ्ट में सिर्फ दो ही सीटें थीं, तो कृष्णा कुमारी पीछे हट गईं. उनका प्लैन कुछ ही दूर पहुंचा होगा कि वह क्रैश हो गया. हादसे में दोनों की मौत हो गई. प्लैन क्रैश की अलग-अलग वजह बताई गईं. कई लोगों का कहना था कि उनकी मौत साजिश के तहत हुई है. 2001 की फिल्म ‘जुबैदा’ जिसे उनके बेटे खालिद मुहम्मद ने लिखा है, उसमें दिखाया गया कि एक्ट्रेस कभी महाराजा से दूर नहीं जाना चाहती थीं, इसलिए अपनी जान दे दी. कहते हैं कि जुबैदा की रूह आज भी जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस में भटकती है.