इस ठेले पर कचौड़ी से ज्यादा कढ़ी का स्वाद लेने आते हैं लोग, खाते ही लेने लगते हैं चटकारे

इस ठेले पर कचौड़ी से ज्यादा कढ़ी का स्वाद लेने आते हैं लोग, खाते ही लेने लगते हैं चटकारे

पीयूष पाठक/अलवर. शहर में अगर स्वाद के दीवानों की बात की जाए तो इनके लिए स्वाद के अलग अलग वैरायटी की कोई कमी नहीं है. अलवर शहर मे मिलने वाले व्यंजन अपना एक अलग ही स्वाद रखता है. इस कारण ही हर व्यंजन के स्वाद में चार चांद लग जाते है. वैसे तो अलवर शहर में बहुत जगह कढ़ी कचौड़ी मिल जाएगी और सभी का अपना अलग स्वाद भी रहता है.

आज हम आपको अलवर शहर की एक ऐसी कचौड़ी की दुकान के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां पर स्वाद के शौकीन सिर्फ कचौड़ी खाने के लिए नहीं जाते बल्कि इसके साथ मिलने वाली कढ़ी के भी लोग इतने दीवाने हैं. इस कारण लोगों की जुबान पर यहां कढ़ी कचौड़ी का नाम छाया रहता है. मोनू अपनी कढ़ी में कुछ ऐसे मसाले डालते हैं कि हर किसी की जीभ मचल जाती है और इसका स्वाद लेने से कोई भी नहीं चुकता. अलवर शहर के लोगों को यह है बीते कई सालों से स्वाद देते हुए आ रहे है.

घर के मसाले डालते हैं कढ़ी में
मोनू चाट भंडार के ओनर मोनू ने कहा कि उन्होंने अपनी दुकान की शुरुआत सन 2008 में कई. मोनू कचौड़ी समोसा कढ़ी के साथ बेचते हैं. लेकिन लोगों को कचौड़ी में समोसे से ज्यादा कढ़ी पसंद आती है. लोग उनकी कड़ी को ज्यादा पसंद करते हैं और बार-बार लेने से नहीं चूकते. मोनू ने बताया कि वह अपनी क्वालिटी के साथ कोई कंप्रोमाइज नहीं करते, क्वालिटी अच्छी देते हैं इसलिए लोग हमारे पास आते हैं. मोनू ने बताया हमारी कढ़ी लोगों को इसलिए पसंद आती है क्योंकि यह प्योर छाछ से बनाई जाती है. जो लोगों को काफी पसंद आ रही है. कचौड़ी व कढ़ी में डलने वाले मसाले के बारे में मोनू ने कहा कि साबुत मसाले बाजार से लाकर घर पर उन्हें तैयार किया जाता है. जिससे मिलावट की कोई आशंका नहीं रहती.

ऐसे हुई शुरुआत
मोनू ने बताया कि मैंने पहले कुछ सालों तक काम सीखा. इसके बाद मैंने अपना काम शुरू किया. शुरुआती में दालके, पपड़ी बेचना शुरू किया. लेकिन एक दिन एक कस्टमर ने मेरे से किसी सब्जी बनाने की डिमांड की. मेरे पास जो सामान मौजूद था उससे मैंने कढ़ी बनाई, जो कस्टमर को पसंद आई. इसी से हमारी कड़ी की शुरुआत हुई और आज हमारी कढ़ी पूरे शहर में प्रसिद्ध है. इसी के नाम से हमें जाना जाता है.शुरुआती समय व अब के समय में काफी चेंज आया है. लोगों को हमारे द्वारा बनाए गए समोसे, कचौड़ी पसंद आ रहे है. हमारी ओर से साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. कचौड़ी समोसा को खुले में नहीं रखा जाता साथ ही घर से तैयार कर कचौड़ी को कार्टून में पैक कर भेजा जाता है. क्योंकि व्यक्ति कुछ अच्छा खाने के लिए पैसा खर्च करता है, तो उन्हें वैसी चीज खिलाना हमारा काम है और उसको हम बखूबी कर रहे हैं. मोनू ने बताया कि जब उन्होंने कचौड़ी की शुरुआत की, उस समय कचोरी तीन से चार रुपए की मिलती थी. आज कचौड़ी की कीमत 20 रुपये हो गई. पूरे दिन में मोनू के करीब 400 कचौड़ी व समोसे बिक जाते हैं.

लोगों का कहना
मोनू की दुकान पर कचौड़ी खाने आए मनीष सोनी ने बताया कि वह यहां पर करीब 5 सालों से कचोरी खा रहे हैं. उनकी कचौड़ी कढ़ी के साथ स्वादिष्ट लगती है. पूरे शहर में ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलता. इस कारण लोग दूर-दूर से उनके पास कचौड़ी खाने के लिए आते हैं.

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