हाइलाइट्स
राजस्थान में आई फ्लू का कहर
आई फ्लू पीड़ित मरीजों की आई बाढ़
सावधानी बरतकर आप कर सकते हैं इससे बचाव
जयपुर. मौसम में ही रहे बदलाव के कारण राजस्थान में कई बीमारियों का प्रकोप बढ़ने लगा है. इनमें सबसे ज्यादा कहर आई फ्लू ढा रहा है. यह तेजी से प्रदेशभर में पैर पसार रहा है. राजधानी जयपुर समेत प्रदेश के अन्य सरकारी और निजी अस्पतालों में मौसमी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की बाढ़ सी आ गई है. बीते एक सप्ताह में आई फ्लू का संक्रमण तेजी से फैला है. तीर्थ नगरी पुष्कर समेत अन्य पर्यटन स्थलों पर भी आई फ्लू का बड़ा असर नजर आया है.
कंजंक्टिवाइटिस यानि आंख में फैल रहे इस इंफेक्शन का इलाज कराने के लिए जयपुर शहर के एसएमएस हॉस्पिटल की ओपीडी में मरीजों का तांता लगा हुआ है. अकेले जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में आई-फ्लू से संक्रमित रोजाना करीब डेढ़ सौ से दो सौ मरीज आ रहे हैं. इसी तरह जयपुरिया अस्पताल में नेत्ररोग विभाग की ओपीडी में भी दो तिहाई से ज्यादा मरीज आई-फ्लू से पीड़ित सामने आ रहे हैं. आई फ्लू का असर ज्यादातर छोटे बच्चों में देखा जा रहा. आई फ्लू इंफेक्शन का असर पीड़ित में करीब 3 से 7 दिन तक रहता है. ऑप्थल्मालॉजिस्ट की मानें तो यह संक्रामक वायरस जनित रोग है. इसमें बचाव रखा जाना जरूरी है.
ये हैं आई फ्लू के लक्षण
आई फ्लू के लक्षणों में आंख लाल हो जाना, आंख की बाहरी सतह में सूजन आना, आंखों से पानी आना और आंख का चिपकना मुख्य है. इसके अलावा कुछ लोगों को लगता है कि आंख में धूल के कण या मिट्टी जैसा कुछ चला गया है. ऐसे में लोग आंख को मसल भी लेते हैं. एसएमएस अस्पताल जयपुर के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज शर्मा ने बताया कि ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि ये कंजेक्टिवाइटिस के लक्षण है. कई बार आंख में जो सूजन आती है. उसकी वजह से दाने भी बन जाते हैं. वो चुभते हैं. ये लक्षण जैसे ही आए तत्काल डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए.
संक्रमित हाथों के टच से फैलता है कंजेक्टिवाइटिस
लोगों का मानना है कि कंजेक्टिवाइटिस संक्रमित मरीज को देखने से भी इसका संक्रमण हो सकता है. डॉ. पंकज के अनुसार इसे मिथ्या बताते हुए कहा कि यदि ऐसा होता तो सबसे पहले इस तरह के मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर इस बीमारी से संक्रमित होते. ये एक गलत धारणा है. उन्होंने स्पष्ट किया कि ये हवा से नहीं फैलता और ना ही देखने से फैलता है. बल्कि इसका माध्यम हैंड फोमाइट्स या संक्रमित हाथों का टच है. यानी संक्रमित व्यक्ति के हाथ मिलाने, उसका मोबाइल लेने, उसके इस्तेमाल किए गए कपड़ों, टॉवल आदि का इस्तेमाल करने से फैलता है.
इस संक्रमण से बच्चे ज्यादा संक्रमित
डॉ. पंकज के अनुसार ये संक्रमण सबसे ज्यादा बच्चों में पाया जा रहा है. बच्चों को हाइजीन के बारे में बता तो सकते हैं लेकिन इसे लेकर उन्हें एनफोर्स नहीं कर सकते. इसी वजह से अमूमन बच्चों में ये संक्रमण ज्यादा तेजी से फैलता है. इस संबंध में स्कूलों में हिदायत दी गई है कि यदि किसी भी बच्चे को कंजेक्टिवाइटिस हो तो उसे तुरंत घर भेजें. ताकि ये संक्रमण और बच्चों में ना फैले. इसके अलावा जिन बच्चों की इम्युनिटी कम है उनमें ये संक्रमण ज्यादा और तेजी से फैलता है.
प्रिकॉशन बरतना है जरूरी
ये बीमारी क्योंकि हाथों के टच से जुड़ी हुई है इसलिए बार-बार हाथ धोने चाहिए. यदि घर में किसी को संक्रमण है तो उससे उचित दूरी बनाए रखें. वो काला चश्मा लगाए ताकि बार-बार आंखों की तरफ हाथ ना जाए. यदि संक्रमित व्यक्ति खुद दवाई डाल रहा है तो ठीक है. यदि कोई और उसकी आंख में दवा डाल रहा है तो हैंड वॉश करें. संक्रमित मरीज भी लगातार अपने हाथ धोते रहें. यही नहीं संक्रमित मरीज से जुड़े कपड़े, तौलिया, बेडशीट और तकिया भी अलग ही रखें. इसे रोकने की कोई दवा नहीं आती.
5 से 7 दिन में सामान्य उपचार से ठीक हो सकता है कंजेक्टिवाइटिस
डॉक्टर पंकज के मुताबिक जिस तरह सामान्य खांसी-जुकाम 5 से 7 दिन में ठीक होता है. उसी तरह कंजेक्टिवाइटिस भी 5 से 7 दिन में ठीक हो जाता है. इसमें मुख्य रूप से उपचार सिर्फ यही है कि मरीज की तकलीफ कम हो. आंखें लाल रहना, पानी आना, उसके लिए प्लेन एंटीबायोटिक और सूजन कम करने की दवाई देते हैं. इसके अलावा संक्रमित मरीज थोड़ा गर्म सेक करें. सबसे जरूरी है कि बिना डॉक्टर की सलाह के किसी केमिस्ट से जाकर दवाई ना लें. ज्यादातर लोग इसमें स्टेरॉयड दवा दे देते हैं. इसके लास्ट में डीएम या डीएक्स लगा रहता है. वह सेकेंडरी इंफेक्शन को बढ़ा सकता है. इसलिए इस तरह के स्टेरॉयड इस्तेमाल ना करें.
कॉम्प्लिकेशन के चांस कम
डॉक्टर पंकज ने स्पष्ट किया कि यदि इस बीमारी का इलाज ना लेते हुए केवल सपोर्टिव ट्रीटमेंट लिया जाए तो भी ये बीमारी 5 से 7 दिन में पूरी तरह ठीक हो जाती है. इसमें कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं होता. यदि मरीज स्टेरॉयड यूज करें या आंखों को ज्यादा मसल ले तब संक्रमण अंदर तक फैल सकता है. उसमें ये बीमारी भयानक रूप ले सकती है. हालांकि इस तरह के केस अब तक देखे नहीं हैं. क्योंकि अब लोगों में जागरुकता भी बढ़ गई है. संक्रमित मरीज तत्काल डॉक्टर को दिखाता है और सही तरीके से इलाज लेता है.
आंखों की रोशनी कम होने का यह हो सकता है कारण
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी संक्रमित मरीज की आंखों की रोशनी कम होने का एक कारण हो सकता है कि जब ये संक्रमण ठीक हो जाता है तब आंख में कॉर्निया के ऊपर कोई स्पॉट या दाने आ जाते हैं. वह इस इंफेक्शन का इम्यून रिएक्शन है. इसकी वजह से कुछ धुंधलापन आ जाता है. लेकिन वो ट्रीटमेंट से ठीक भी हो जाता है. उसमें चिंता वाली कोई बात नहीं है.