हाइलाइट्स
एससी-एसटी वर्ग का आरक्षण भी दो-दो प्रतिशत बढ़ाने के लिए सरकार करवा रही है परीक्षण
अभी आरक्षण देने के मामले में दूसरे नंबर पर तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा 82 फीसदी
प्रदेश में कई समाजों ने महापंचायत और महासम्मेलन से आरक्षण के लिए किया है शक्ति प्रदर्शन
रिपोर्ट – एच. मलिक
जयपुर. राजस्थान के सियासी रण में अभी चुनावी वादे करने, लोकप्रिय और लुभावनी घोषणाएं (Popular Announcements) करने में बीजेपी से सत्तारूढ़ कांग्रेस बहुत आगे है. गहलोत सरकार (Gehlot Government) प्रदेश में 74 प्रतिशत आरक्षण की तैयारी कर रही है. राजस्थान में ऐसा होने के बाद यह देश में सबसे ज्यादा आरक्षण (Reservation) देने वाला दूसरा राज्य बन जाएगा. अभी सबसे ज्यादा 82 फीसदी रिजर्वेशन छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में है, जहां पर कांग्रेस की ही सरकार है. राजस्थान (Rajasthan) में वर्तमान में 64 प्रतिशत आरक्षण है. वर्तमान में देशभर में आरक्षण देने के मामले में दूसरे नंबर पर तमिलनाडु है, जहां 69 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. हरियाणा, बिहार और केरल राज्य में 60 प्रतिशत रिजर्वेशन है. सीएम गहलोत ने ज्यादातर जातियों को खुश करने के लिए आरक्षण का पासा फेंक दिया है.
राजस्थान में अभी ओबीसी को 21%, एससी को 16%, एसटी को 12%, ईडब्ल्यूएस को 10% और एमबीसी को 5% आरक्षण है. ताजा घोषणा ओबीसी आरक्षण को 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की है. इसके लिए ओबीसी आयोग अति पिछड़ी जातियों का सर्वे करेगा. राजस्थान में ओबीसी में 80 से ज्यादा जातियां शामिल हैं. इनकी जनसंख्या 55 फीसदी तक मानी जा रही है. आयोग की सर्वे रिपोर्ट और बढ़ा हुआ आरक्षण लागू होने के बाद ओबीसी में ही अति पिछड़ी जातियों के युवाओं को सरकारी नौकरी और अन्य योजनाओं में फायदा मिलेगा.
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एससी-एसटी का आरक्षण 2-2 प्रतिशत बढ़ाने का परीक्षण
ओबीसी के साथ-साथ अब गहलोत सरकार एससी और एसटी के आरक्षण का दायरा बढ़ाने पर भी विचार कर रही है. सीएम गहलोत के मुताबिक एससी-एसटी के विभिन्न संगठन भी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण बढ़ाने की मांग लगातार कर रहे हैं. इसलिए सरकार इस मांग का भी परीक्षण करवा रही है. ताकि एससी-एसटी वर्ग का आरक्षण भी दो-दो प्रतिशत बढ़ाया जा सके. हालांकि आरक्षण में वृद्धि का सबसे ज्यादा फायदा ओबीसी वर्ग को मिलेगा. इस वर्ग का आरक्षण 6 फीसदी बढ़कर केंद्र सरकार के बराबर हो जाएगा.
ओबीसी कमीशन में जल्द होगी सदस्यों की नियुक्ति
सीएम गहलोत ने बांसवाड़ा में घोषणा कि थी कि अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 21% आरक्षण के साथ 6% आरक्षण और देंगे. यह ओबीसी वर्ग की अति पिछड़ी जातियों के लिए रिजर्व होगा. इस वर्ग की अति पिछड़ी जातियों की पहचान के लिए ओबीसी आयोग सर्वे करेगा और इसकी रिपोर्ट देगा. लेकिन फिलहाल तो हालात यह हैं कि राजस्थान के ओबीसी कमिशन के नाम पर सिर्फ अध्यक्ष भंवरू खां ही हैं. ऐसे में तय माना जा रहा है कि अब राज्य की कांग्रेस सरकार ओबीसी कमीशन के लिए जल्द ही सदस्यों की नियुक्ति कर सकती है. पिछली सरकार में ओबीसी कमीशन में 3 सदस्य थे.
नौकरियां हासिल करने में ओबीसी की पांच जातियां आगे
राजस्थान में ओबीसी कैटेगरी में यूं तो 81 जातियां हैं, लेकिन आरक्षण का सर्वाधिक फायदा सिर्फ पांच ही उठा रही हैं. राज्य पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी के लिए आरक्षित 70 से 75 फीसदी सरकारी नौकरियों में इन्हीं पांच जातियों का वर्चस्व रहा है. बाकी जातियों को सिर्फ 20 से 25 फीसदी नौकरियां ही मिली हैं. ओबीसी श्रेणी में नौकरियां पाने में जाट समाज सबसे आगे है. इसके अलावा कुमावत (कुम्हार), यादव (अहीर) और माली (सैनी) और गुर्जर हैं.
इसीलिए लिया जातिगत जनगणना कराने का फैसला
इस बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल ही में दोहराया कि जब वे सीएम बने, उसके बाद 1998 में प्रदेश में आरक्षण ढंग से लागू हुआ. ओबीसी को पहली बार 21 प्रतिशत, एससी-एसटी का 8 से 16 प्रतिशत और 6 से 12 प्रतिशत उन्हीं की सरकार ने किया. अब ओबीसी की तरह एससी और एसटी वर्ग की आबादी भी बढ़ती जा रही है. ऐसे में स्वभाविक मांग की जा रही है कि आरक्षण को आबादी के अनुपात में बढ़ाया जाना चाहिए. इसीलिए हमने अब जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया है. ताकि जनगणना के बाद सभी जाति, धर्म के लोगों को आबादी के अनुपात में लाभ मिल सके.
आरक्षण बढ़ाने के लिए समाज कर रहे आंदोलन
प्रदेश में चुनावी साल को देखते हुए कई समाज महापंचायत, महाकुंभ और महा सम्मेलन में लगे हुए हैं. पिछले समय राजपूत, जाट, ब्राह्मण, आदिवासी व दलित समाज एकजुट होकर शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं. वहीं, सैनी-माली-कुशवाहा समाज ने भरतपुर संभाग में हाईवे रोककर 10 दिन तक प्रदर्शन किया. ओबीसी आरक्षण में सैनी समाज के लिए अलग से कोटा तय करने की मांग की गई. जयपुर में कुमावत समाज ने 21 मई को विशाल सम्मेलन किया था. कुमावत व सैनी समाज दोनों मूल ओबीसी में हैं, लेकिन इनका प्रतिनिधित्व आबादी के मुकाबले सरकारी नौकरियों में कम है. शक्ति प्रदर्शन में इन सभी समाजों ने आरक्षण बढ़ाने और वंचित जातियों के लिए नई आरक्षण श्रेणियां बनाने की पुरजोर मांग की थी.