हाइलाइट्स
- 1. हाइलाइट्स
- 2. एच. मलिक
- 3. जैसलमेर.
- 4. पाक बॉर्डर से सटे जिलों में टिड्डियों की एक्टिविटी मिली
- 5. PM का पद ठुकराकर आजादी के आंदोलन में कूदा था ये क्रांतिकारी, बेटे की मौत की खबर के बाद भी नहीं रोका भाषण
- 6. पाक से आए टिड्डी दल ने 2019 में मचाई थी तबाही
- 7. इस बार फिर टिड्डियों के अनुकूल हैं परिस्थितियां
- 8. नियंत्रण के लिए चार जिलों की टीम कर रही स्प्रे
- 9. अगस्त में कमजोर पड़े मानसून ने भी बढ़ाई चिंता
- 10. पिछले 12 साल में हो सकती है सबसे कम बारिश
2019 में भी पाकिस्तान से आए टिडि्डयों के दल ने जो तबाही ने ला दिए थे किसानों की आंखों में आंसू
पिछले 12 वर्ष में अगस्त माह में सबसे कम बारिश साल 2017 में हुई, इस बार टूट सकता है यह रिकॉर्ड
पहले बेमौसम की बारिश, फिर बिपरजॉय और इस माह मानसून की बेरुखी से फसलों को होगा नुकसान
एच. मलिक
जैसलमेर.
पाकिस्तान से आई टिड्डियों का आतंक (Treat of Locusts) एक बार फिर फसलों पर मंडराने लगा है. पाकिस्तानी (Pakistan) टिड्डियों ने सरहदी जिलों के सौ हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में अंडे दिए हैं और येजमीन पर रेंगने लगी हैं. किसानों (Farmers) में खौफ है कि यदि तत्काल इनको नियंत्रित नहीं किया गया तो कुछ दिन बाद ये बड़ी होकर मूंग, मोठ, मूंगफली और दूसरी फसलें (Crops) बर्बाद कर देंगी. इस बीच अगस्त में मानसून (Monsoon) की बेरुखी ने भी किसानों की चिंता बढ़ा दी है.
राजस्थान और गुजरात के भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से सटे इलाकों में लगातार टिड्डियों पर नियंत्रण करने के लिए सर्वे हो रहा है. इस बार इन इलाकों में 155 स्पॉट देखे गए हैं, जहां पर टिड्डियों के अंडे दे देने की संभावना बनी हुई है.
पाक बॉर्डर से सटे जिलों में टिड्डियों की एक्टिविटी मिली
इस बार इन टिड्डियों ने राजस्थान की सरजमीं पर जहां अपना जाल फैलाया है, वहां पूरा इलाका रेगिस्तानी है. इसमें बाड़मेर, जैसलमेर, सम, फलोदी, बीकानेर, सूरतगढ़, चूरू, नागौर, जोधपुर, जालोर, गुजरात का पालनपुर और भुज के स्पॉट शामिल हैं. बीकानेर जिले के सुरधना में पिछले माह हुए सर्वे में टिड्डियों की एक्टिविटी देखने को मिली. टिड्डी विभाग भारत-पाक बॉर्डर से सटे राजस्थान के 10 जिलों और गुजरात के कुछ हिस्से में हर महीने 2 बार टिड्डी सर्वे करता है, ताकि पाकिस्तान से आने वाली टिड्डियों की एक्टिविटी के बारे में पता चल सके.
PM का पद ठुकराकर आजादी के आंदोलन में कूदा था ये क्रांतिकारी, बेटे की मौत की खबर के बाद भी नहीं रोका भाषण
पाक से आए टिड्डी दल ने 2019 में मचाई थी तबाही
टिड्डी विभाग के डॉ. वीरेंद्र के मुताबिक रेगिस्तानी इलाकों में जुलाई में बरसात के बाद से ही टिड्डी का खतरा बढ़ जाता है. थार में टिड्डी पाक की तरफ से आती रही हैं. ये टिड्डियां इतनी खतरनाक हैं कि 3 मिनट में एक पेड़ चट कर सकती हैं. 2019 में पाकिस्तान से आए टिडि्डयों के दल ने फसलों पर जो तबाही मचाई, उसने किसानों को रुला दिया था. तब हजारों किसानों की फसलें चट करने के बाद पहली बार इनका आतंक बड़े शहरों में भी देखा गया था.
इस बार फिर टिड्डियों के अनुकूल हैं परिस्थितियां
इस बार पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर समेत आसपास के इलाकों में जमकर बारिश हो चुकी है. विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे में यहां हरियाली बढ़ी है और जमीन में नमी भी है. ऐसे में यह परिस्थितियां टिड्डियों के पनपने के लिए पूरी तरह अनुकूल बनी हुई हैं. बीकानेर के अलावा सरहदी जिलों में टिड्डियों के कई स्पॉट मिले हैं. जैसलमेर से 150 किमी दूर मोहनगढ़ कस्बे में टिड्डियों का एक बड़ा दल 150 हेक्टेयर खेतों में डेरा डाले है. हालांकि, ये अभी अंडों से निकले ही हैं, लेकिन तेजी से इनकी तादाद बढ़ती जा रही है.
नियंत्रण के लिए चार जिलों की टीम कर रही स्प्रे
टिड्डी नियंत्रण दल की टीम में जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर और जोधपुर से 20 से भी ज्यादा अधिकारी व कृषि विभाग के कर्मचारी भी स्प्रे की 4 गाड़ियों के साथ सर्वे कर रहे हैं. हालांकि अभी ये होपर हैं, जो फसलों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते. लेकिन जब ये उड़ने के काबिल हो जाएंगे तो इनपर कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए टिड्डी नियंत्रण दल के लोग अभी से इनके स्पॉट को आइडेंटिफाई कर स्प्रे कर रहे हैं, ताकि खतरा बढ़े नहीं. स्प्रे करने से कुछ टिड्डियां मरीं हैं, लेकिन इनका फैलाव कितना है, अभी इसका आंकलन मुश्किल है. चौंकाने वाली एक जानकारी ये भी सामने आई है कि कुछ टिड्डियां तो उन्हीं के अंडे में से निकल रही हैं, जिन्हें दो साल पहले मारा गया था.
अगस्त में कमजोर पड़े मानसून ने भी बढ़ाई चिंता
किसानों के लिए टिड्डियों के अलावा बारिश भी परेशानी का सबब बनी हुई है. पहले मार्च-अप्रैल में बेमौसम की बरसात हुई. फिर मानसून की शुरुआत भले अच्छी रही हो, लेकिन अब ये इतना कमजोर हो गया कि इस बार अगस्त में सबसे कम बारिश होने की आशंका बन गई है. आंकड़ों में बात करें तो प्रदेश में अगस्त माह में पिछले 12 साल में सबसे कम बारिश होने का रिकॉर्ड बन सकता है. आधा महीना बीतने के बाद भी राज्य में औसत बारिश बेहद कम हुई है. वैसे मानसून के सीजन में अगस्त ऐसा महीना रहता है, जब अच्छी बरसात होती है.
पिछले 12 साल में हो सकती है सबसे कम बारिश
मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक अगले एक सप्ताह अभी राज्य में मानसून के कमजोर रहने की स्थिति बनी हुई है. इसके पीछे अल-नीनो इफेक्ट माना जा रहा है. अल-नीनो कंडीशन बनने से राजस्थान के साथ ही देश के कई हिस्सों में मानसून कमजोर पड़ता जा रहा है. राजस्थान में मानसून सीजन की बात करें तो यह एक जून से 30 सितम्बर के बीच है. इस सीजन में राजस्थान में अब तक 395.2 मिमि बारिश हो चुकी है, जबकि पूरे सीजन में औसत बारिश 435.6 मिमि होती है. पिछले 12 सालों में सबसे कम बारिश साल 2017 में 84.8 मिमि हुई थी, लेकिन इस बार के आंकड़े और परिस्थिति बता रहे हैं कि इससे भी कम बारिश हो सकती है.