मोहित शर्मा/ करौली.
देशभक्ति पर आधारित फिल्मों में आपने अक्सर देखा होगा कि आतंकवादियों से मुठभेड़ करते समय भारत के कई वीर जवान दुश्मन की छावनी तक पहुंच जाते हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी ही हकीकत से रूबरू करा रहे हैं, जिसमें भारतीय सेना का एक हवलदार फिल्मी कहानी की तरह कारगिल युद्ध के बाद चलाए गए ऑपरेशन त्रिशूल में अपनी टुकड़ी के जवानों की जान बचाने के लिए दुश्मन की छावनी में घुसकर और उन्हें मौत की नींद सुलाकर ही लौटा था. भारतीय सेना के रिटायर्ड सूबेदार के मुताबिक, वह मंजर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था. केवल 10 कदम की दूरी पर दुश्मन की बंदूक से निकलने वाली गोली से अपनी और अपनी साथियों की जान बचाना उन्होंने मां जगदंबे का आशीर्वाद बताया है.
भारतीय सेना की 12वीं राज राइफल्स से आनेवाले प्रह्लाद सिंह उस समय हवलदार के पद पर थे. जिस वक्त उनके कमांडर ऑफिसर कर्नल ए. एस. सेंगर हुआ करते थे. उसी समय उन्हें फार्मेशन से आदेश मिला की फलां-फलां जगह पर कुछ आतंकवादी आए हुए हैं. उन आतंकवादियों के अंजामों को असफल बनाने के लिए उस समय ऑपरेशन त्रिशूल चलाया गया था.
रिटायर्ड सूबेदार की जुबानी
जैसे ही हम ऑपरेशन के तहत दिए गए पॉइंट पर पहुंचे तो वहां हमको एक मकान मिला. जिसमें लोग सोए हुए थे. मगर उस मकान के ठीक बाहर हमें बिस्कुट और सिगरेट का एक खाली पैकेट मिला. जिस पर मेड इन पाकिस्तान लिखा हुआ था और फिर हमारा अनुमान हकीकत में बदल गया कि आतंकवादी यही छुपे हुए हैं. उसके बाद हमने आपस की पार्टियों में यह सूचना दी कि यहां पर कुछ चीजें ऐसी मिली हैं, जो शक के दायरे में हैं इसलिए सभी अलर्ट चलें.
पहाड़ी और जंगल का एरिया होने के उस समय हम सभी एक दूसरे को कवर करके चल रहे थे. हमारे कमांडर कैप्टन बी.पी.एस तोमर ने मुझको ऊपर वाली टीम में कवरिंग फायर में रखा था. तभी अचानक काफी दूर चलने के बाद एकदम से फायरिंग हो गई. फायरिंग शुरू होते ही मेरे नीचे वाली जवानों की टुकड़ी चिल्लाने लगी. ऐसे में मैं उनकी मदद के लिए बिना कवरिंग टीम को बताएं तुरंत एक्शन लेते हुए वहां पहुंच गया. जैसे मैं वहां पहुंचा तो मैंने देखा मेरे से 10 कदम की दूरी पर 3 आतंकवादी बंदूक से ताबड़तोड़ फायर कर रहे हैं. हालांकि मैंने बिना देखे और सोचे समझे हिप पोजीशन में 2 उग्रवादियों को तो गोली से उड़ा दिया. जिसके बाद मुझे लगा कि अब यहां से बचना मुश्किल है. पता नहीं कितनों का ग्रुप है. लेकिन ऊपर वाले की मेहरबानी और जगदंबे की कृपा से हिप पोजीशन में तीसरा राउंड चलाकर उसे भी ढेर कर दिया. जिसकी मुझे उम्मीद भी नहीं थी.
रिटायर्ड सूबेदार प्रह्लाद सिंह ने बताया कि ये हादसा जिला राजौरी तहसील थानामंडी का है. इसके बाद इस पूरे ओवरऑल केस में मुझे सेना मेडल से नावाजा गया था. इसके अलावा करौली के वीरवास नामक गांव के सूबेदार के पास 40 से ज्यादा जर्नल, कर्नल और ब्रिगेडियर के प्रशंसा पत्र भी हैं.
रिटायर्ड सूबेदार ने लोकल 18 से खास बातचीत में बताया कि कुल डेढ़ से 2 मिनट चलने वाले इस ऑपरेशन में सोचने, बोलने और विचारने का समय भी नहीं था. जब मुझे बचने की कोई आस भी नहीं थी. तो ऐसा लग रहा था आज तो हम भी गए और हमारे साथी भी गए. लेकिन बचने की कोई उम्मीद ना होने पर मां जगदंबा की ऐसी कृपा रही की हम सभी साथी बच गए.