हाइलाइट्स
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हाइलाइट्स
- 1.1. कोचिंग का दूसरा पहलू खौफनाक: हर माह कोटा में कोचिंग लेने वाले तीन युवा लगा रहे मौत को गले
- 1.2. कोचिंग संस्थानों में गला-काट प्रतिस्पर्धा में कंप्टीशन का प्रेशर, पेरेंट्स की ज्यादा उम्मीदें ले रही जान
- 1.3. बच्चे डबल मैथड से करने लगे सुसाइड, ताकि किसी भी तरह जिंदा बचने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहे
- 1.4. प्रशासन ने दिए मोटिवेशनल सेमिनार, साइकोलॉजिकल टेस्ट के साथ संडे को कोचिंग से छुट्टी के निर्देश
- 2. (एच. मलिक) कोटा.
- 3. हर माह औसतन तीन छात्र कर रहे सुसाइड
- 4. पेरेंट्स की ज्यादा उम्मीदें बन रहीं हैं बोझ
- 5. इंट्रेंस एक्जाम में फेल होने का फोबिया है हावी
- 6. बच्चे जान देने के लिए चुन रहे हैं डबल मेथड
- 7. रविवार को कोचिंग से छुट्टी रखने के निर्देश जारी
- 8. सुसाइड करने वाले बच्चे, जो कुछ माह कोटा में रहे
कोचिंग का दूसरा पहलू खौफनाक: हर माह कोटा में कोचिंग लेने वाले तीन युवा लगा रहे मौत को गले
कोचिंग संस्थानों में गला-काट प्रतिस्पर्धा में कंप्टीशन का प्रेशर, पेरेंट्स की ज्यादा उम्मीदें ले रही जान
बच्चे डबल मैथड से करने लगे सुसाइड, ताकि किसी भी तरह जिंदा बचने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहे
प्रशासन ने दिए मोटिवेशनल सेमिनार, साइकोलॉजिकल टेस्ट के साथ संडे को कोचिंग से छुट्टी के निर्देश
(एच. मलिक) कोटा.
देशभर में कोचिंग हब (Kota Coaching Hub) के रूप में विख्यात कोटा में (Students) पर बढ़ता तनाव अलार्मिंग स्टेज पर जा पहुंचा है. कच्ची उम्र में अभिभावकों (Parents) की उम्मीदों के पहाड़ तले वे जीवन की बाजी (Suicide case) हार रहे हैं. साल 2019 में रिलीज दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म छिछोरे का डायलॉग- “हम हर जीत, सक्सेस, फेलियर (Failure) में हम इतना उलझ गए हैं कि जिंदगी (Life) जीना भूल गए हैं. जिंदगी में अगर कुछ सबसे ज्यादा जरूरी है तो वो खुद की जिंदगी है.” यह सही मायने में युवाओं को जीवन की सच्ची सीख देता है.
सबसे बड़ा सवाल यही है कि कोचिंग सिटी से सुसाइड सिटी में तब्दील होने के लिए दोषी कौन हैं. कोचिंग संस्थानों में गला-काट प्रतिस्पर्धा में कंप्टीशन का प्रेशर, पेरेंट्स की बच्चों से अत्यधिक उम्मीदें, खुद बच्चे या वो सिस्टम जिसकी देर के बाद आंखें खुलती हैं.
हर माह औसतन तीन छात्र कर रहे सुसाइड
कोटा में कोचिंग छात्र पहले भी सुसाइड करते रहे हैं, लेकिन इस साल इसमें देखी जा रही आशातीत वृद्धि हैरान और सोचने को मजबूर करने वाली है. जनवरी से अब तक यहां पर आत्महत्या के 20 मामले सामने आ चुके हैं. इनमें 13 स्टूडेंट्स को तो कोटा आए हुए दो-तीन महीने से लेकर एक साल से भी कम समय हुआ था. सात स्टूडेंट्स ने तो डेढ़ महीने से लेकर पांच महीने पहले ही कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया था. इनके अलावा दो मामले सुसाइड की कोशिश के भी सामने आ चुके हैं. सवाल यही है कि आखिर क्यों कुछ महीने पहले ही आए बच्चे सुसाइड को मजबूर हो रहे हैं?
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पेरेंट्स की ज्यादा उम्मीदें बन रहीं हैं बोझ
हैरान करने वाला तथ्य यह भी है कि सुसाइड करने वाले ज्यादातर बच्चे मेधावी हैं. जिन्होंने स्कूल में अच्छे मार्क्स प्राप्त किए. शायद ही कोई बच्चा 80 प्रतिशत से नीचे वाला हो. दरअसल, कोई बच्चा स्कूल में 80-90 प्रतिशत अंक लाता है, तो बच्चे और खासकर पेरेंट्स को लगने लगता है कि वह आईआईटी या मेडिकल की तैयारी कर सकता है. एजुकेशन एक्सपर्ट्स का मानना है कि पेरेंट्स की ये बढ़ी हुई उम्मीदें कोचिंग लेने वाले बच्चों पर बोझ बन जाती हैं. क्योंकि यहां उनका मुकाबला देशभर के टॉपर बच्चों से होता है.
इंट्रेंस एक्जाम में फेल होने का फोबिया है हावी
कोचिंग सेंटर्स पर शुरुआत के तीन-चार महीनों में जब सीरीज में आए नंबरों से बच्चों को ये पता चलता है कि वह इस कॉम्पिटिशन में कहां स्टैंड कर रहे हैं, तो तनाव बढ़ जाता है. क्योंकि को मुकाबले में लाने और इंट्रेंस परीक्षा क्रेक करवाने के लिए हर रोज टेस्ट सीरीज होती है. गंभीर बात ये है कि सुसाइड करने वाले अधिकतर बच्चे वो हैं, जो नीट-जेईई की तैयारी कर रहे थे. उनमें से एक-दो को छोड़कर किसी ने एग्जाम ही नहीं दिया था, लेकिन इंट्रेंस एक्जाम में फेल होने का फोबिया इस कदर हावी हो जाता है कि बच्चे सुसाइड को ही आखिरी रास्ता समझने लगते हैं.
बच्चे जान देने के लिए चुन रहे हैं डबल मेथड
एक्सपर्ट्स और पुलिस का भी मानना है कि यहां आत्महत्या करने वाले बच्चों के कुछ सुसाइड नोट्स से संकेत मिलता है कि पेरेंट्स का बच्चों पर बढ़ता दबाव और सेपरेशन एंग्जायटी स्टूडेंट्स की मौत की बड़ी वजह बन रही है. बच्चे इतना दबाव में आ रहे हैं कि वे अपनी मौत का सबसे खौफनाक तरीका चुन रहे हैं. इनमें एक है- डबल मैथड. इस सुसाइड के ऐसे तरीके से जान दी जाती है, जिसमें किसी भी तरह जिंदा बचने की गुंजाइश ही नहीं रहे. अगर फंदे से बच जाए तो किसी और तरीके से निश्चित ही मौत हो जाए. यानी बच्चे मौत का इतना बुरा तरीका चुन रहे हैं तो उनके दिमाग में डीप डिप्रेशन, हायर टेंशन और निगेटिविटी ही जरूर रही होगी.
रविवार को कोचिंग से छुट्टी रखने के निर्देश जारी
एक्सपर्ट इसे अलार्मिंग स्टेज मान रहे हैं. अगर जल्द ही बढ़ते सुसाइड मामलों में कोई स्टेप नहीं उठाया गया तो इससे भी बुरा दौर देखने को मिल सकता है. बच्चों के सुसाइड के बढ़ते केस पर कोटा जिला प्रशासन का मानना है कि इसके कई कारण हैं, जिनमें बहुत ज्यादा स्टडी के साथ पेरेंट्स का प्रेशर, सेपरेशन एंग्जायटी (बच्चों को परिवार से दूर होने का डर), होम सिकनेस आदि मुख्य हैं. कोशिश है जो बच्चे इंजीनियर-डॉक्टर नहीं बनना चाहते, उनकी और पेरेंट्स की काउंसलिंग कर घर भेज दिया जाए. जिला कलक्टर के मुताबिक सुसाइड मामले को रोकने के लिए जो भी जरूरी कदम है वह सब उठाए जा रहे हैं. बच्चों के लिए मोटिवेशनल सेमिनार, साइकोलॉजिकल टेस्ट के साथ संडे के दिन कोचिंग और किसी भी प्रकार के टेस्ट से छुट्टी समेत कई निर्देश दिए हैं.
सुसाइड करने वाले बच्चे, जो कुछ माह कोटा में रहे
- जनवरी में अली राजा ने सुसाइड किया था, जिसे कोटा आए महज पांच महीने ही हुए थे.
- फरवरी में सुसाइड करने वाली बाड़मेर की कृष्णा आठ महीने पहले ही कोटा आई थी.
- कुछ दिन बाद उत्तरप्रदेश के धनेश कुमार ने फंदा लगा लिया, जो डेढ़ महीने पहले ही आया था.
- महाराष्ट्र निवासी 17 साल के भार्गव केशव ने जून में कमरे में फांसी लगा ली. वह केवल दो महीने तक कोटा में रहा.
- इसी माह उदयपुर के सलूंबर निवासी मेहुल वैष्णव ने हॉस्टल में फांसी लगा ली. वो नीट की कोचिंग कर रहा था.
- जुलाई में यूपी के रामपुर जिले के बहादुर सिंह (17) सुसाइड किया. वो दो महीने पहले ही कोटा आया था.
- यूपी के रामपुर के ही छात्र मनजोत ने इसके बाद सुसाइड कर लिया. वो तीन महीने पहले नीट की तैयारी के लिए कोटा आया था.
- अगस्त में बिहार के चंपारण के भार्गव मिश्रा ने सुसाइड कर लिया. वो चार महीने कोटा में रहा था.