इजरायली तकनीक और कड़ी मेहनत से राजस्थान में जमीनें उगल रही सोना

इजरायली तकनीक और कड़ी मेहनत से राजस्थान में जमीनें उगल रही सोना

हाइलाइट्स

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इजराइल में कम पानी के रेतीली जमीन पर भी उन्नत तरीके से फूलों की खेती करने की बारीकियां सीखीं
फूलों की खेती से आ रही मुनाफे की खुशबू, फ्लोरीकल्चर को बढ़ावा देने के लिए सरकार दे रही सब्सिडी
जयपुर का गुढ़ा कुमावतान और दौसा का चांदूसा नई तकनीक अपनाकर मिनी इजराइल बनने की राह पर

जयपुर.

कड़ी मेहनत के बीच यदि अत्याधुनिक तकनीक (Modern Technology) का तड़का लग जाए तो इसके परिणाम बेहतर ही आते हैं. प्रदेश में किसान कई इन्नोवेटिव तरीके से फॉर्मिंग (Innovative Farming) करके धरती से ‘सोना’ निकाल रहे हैं. देशी खाद के साथ जापान, इजराइल और थाइलैंड की नई तकनीकें अपनाकर किसान कई गुना ज्यादा उत्पादन करके मालामाल हो रहे हैं. इनमें वे किसान (Farmers) भी शामिल हैं, जो किन्हीं विषम परिस्थितियों के चलते ज्यादा पढ़ नहीं पाए, लेकिन अब खेती लाखों कमाने का जरिया बन रही है. कृषि के क्षेत्र में युवाओं की भागीदारी बढ़ने से खेती का ट्रेंड भी बदलने लगा है. किसान समय की बचत के साथ कम पूंजी लगाकर अधिक उत्पादन और बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं. वे पारंपरिक खेती के बजाए उन्नत कृषि उपकरणों या भी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

ड्रिप सिस्टम और वैराइटी पर फोकस इजराइली मंत्र

जयपुर जिले के चौमूं कस्बे के प्रकाश का नाम फूलों की खेती से प्रकाशवान हो रहा है. यहां उसकी 27 बीघा जमीन है, इसमें 20 बीघा पर वह गेंदा (मैरीगोल्ड) के फूलों की खेती करते हैं और बाकी 7 बीघा पर गेंदा के फूलों नर्सरी लगाई है. 2018 में प्रकाश गरेड़ को अपने 5 दोस्तों के साथ इजराइल जाने का मौका मिला. वहां फूलों की खेती के आधुनिक तरीकों के बारे में जाना. इजराइल में कम पानी और रेतीली जमीन में उन्नत तरीके से खेती कर मुनाफा आधारित कृषि की बारीकियां सीखीं. ड्रिप सिस्टम से खेती और वैराइटी पर फोकस करने के मंत्र के साथ इजराइल से लौटे प्रकाश ने फूलों की खेती में सब कुछ झोंक दिया.

गेंदे के फूलों की खेती से हो रही लाखों की कमाई

इससे दो साल तक अच्छा प्रोडक्शन लिया. लेकिन कोरोना के चलते उन्हें 20 लाख का नुकसान उठाना पड़ा. इसके बाद थाईलैंड और जापान की वैराइटी के सीड्स खरीदे. जापान की साकाटा किस्म 900 नंबर के बीज की खासियत ये है कि इसका फूल बॉल की तरह बिल्कुल गोल और भरा-पूरा होता है. ये फूल लंबे वक्त तक ताजा रहते हैं और मार्केट में इसकी कीमत भी बहुत अच्छी मिलती है. सावन-भादो में धार्मिक आयोजनों में ख्यातनाम मंदिरों से फूलों के ऑर्डर मिलते हैं. रक्षाबंधन के बाद अब जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्र और दिवाली पीक सीजन होता है. शादी का सीजन भी पीक सीजन रहता है, जिसमें फूलों का भाव 150 रुपए किलो तक पहुंच जाता है. इस तरह साल में 20 लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है.

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भरतपुर में भी मैरीगोल्ड उगल रहा गोल्ड

इसी तरह भरतपुर जिले के किसान जमुना लाल भी प्रगतिशीन किसान हैं. वे गेंदा (मैरीगोल्ड) के फूलों की खेती में रासायनिक खाद की बजाय जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं. कुछ साल पहले 4 हेक्टेयर भूमि में गेंदा की खेती की. एक वर्ष में 10 से 12 बार फूल आते है और एक हेक्टेयर में करीब 15 टन फूलों का उत्पादन होता है. कई व्यापारी उनका माल सीधे खेत से ही ले जाते है. त्योहारों के सीजन में फूलों की कीमत 200 से 300 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है. वे हर साल इस खेती से 15 से 20 लाख रुपये कमाते हैं.

फ्लोरीकल्चर को बढ़ावा देने के लिए दे रहे हैं सब्सिडी

गुलाब, गेंदा फूलों की खेती से मुनाफे की खुशबू आ रही है. इसमें लागत कम और कमाई ज्यादा है. फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर पर कई योजनाएं चला रही हैं. इसी कड़ी में राजस्थान सरकार ने प्रदेश में फ्लोरीकल्चर को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सब्सिडी दे रही है. इसके तहत दो हेक्टेयर क्षेत्र में लूज फ्लावर यानी देसी गुलाब, गेंदा, गुलदाउदी, गैलार्डिया की खेती के लिए छोटे और सीमांत किसानों को लागत का 40 प्रतिशत तक सब्सिडी यानी अधिकतम 16,000 रुपये की सब्सिडी का प्रावधान है. अन्य किसानों को लूज फ्लावर की खेती पर 25 प्रतिशत की छूट यानी अधिकतम 10,000 रुपये सब्सिडी मिलती है.

‘मिनी इजराइल’ बन रहे राजस्थान के कुछ गांव

विदेशी तकनीक पर आधारित मॉडर्न खेती के तरीकों ने खेती-किसानी को मुनाफे का सौदा बना दिया है. जयपुर से 35 किलोमीटर दूर है गुढ़ा कुमावतान और बसेड़ी. गांव के सारे किसान इजराइल की एग्रीकल्चर टेक्नीक को फॉलो कर रहे हैं. इसलिए इसे मिनी इजराइल भी कहते हैं. इसी तरह दौसा का चांदूसा गांव मिनी इजरायल बनने की राह पर है. गुढ़ा कुमावतान प्रगतिशील किसान पॉलीहाउस, शेडनेट हाउस में सब्जियों की खेती करके लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. इससे यहां करोड़पति किसानों का एक नया वर्ग तैयार हो गया है.

पॉलीहाउस तकनीक ने किसानों को बनाया करोड़पति

इस टेक्नीक को गांव के ही एक किसान खेमाराम इजराइल से सीखकर आए. करीब एक दशक पहले खेमाराम को राजस्थान सरकार के सहयोग से इजराइल जाने का मौका मिला. वहां पर कम पानी के बावजूद कंट्रोल एन्वायरन्मेंट में पॉलीहाउस की खेती को देखा और समझा. वापस आकर खेमाराम ने सरकारी सहयोग से पहला पॉलीहाउस लगाया. इसके बाद जो रिजल्ट आया उसने परिवार और पूरे गांव वालों को हैरान कर दिया. धीरे-धीरे दूसरे किसानों ने भी यह टेक्नीक अपनाई. एक पॉलीहाउस या ग्रीन हाउस पर सरकार कुल लागत का 50 फीसदी सब्सिडी देती है. अब तो कई किसानों ने पॉलीहाउस को ठेके पर देकर पैसा कमाने का तरीका भी निकाल लिया है.

hindi.news18.com

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