राजस्थान कांग्रेस: CM गहलोत के बयान ने पार्टी के बुजुर्ग नेताओं की उड़ाई नींद

राजस्थान कांग्रेस: CM गहलोत के बयान ने पार्टी के बुजुर्ग नेताओं की उड़ाई नींद

जयपुर.

कांग्रेस पार्टी विधानसभा चुनाव में जीताऊ चेहरों पर ही दांव लगायेगी. टिकट बंटवारे में उम्र की सीमा आड़े नहीं आयेगी. सीएम गहलोत के इस बयान के बाद राजस्थान के कई बुजुर्ग नेता परेशान हैं. गहलोत के बयान से उनके अपने बेटों को चुनाव मैदान में उतारने के सपनों पर पानी फिरता दिख रहा है. नेता पुत्रों की लॉन्चिंग भी खटाई में पड़ सकती है. सीएम गहलोत के इस बयान के बाद कांग्रेस की राजनीति में खलबली मची हुई है. वहीं कई युवा नेताओं के चेहरों भी चिंता की लकीरें खींच गई हैं.

सीएम गहलोत बुजुर्ग नेताओं को चुनावी मैदान में बनाये रखना चाहते हैं. लेकिन नेताजी बेटे की सियासी पारी का आगाज कराकर खुद मार्गदर्शक की भूमिका में जाना चाह रहे हैं. गहलोत के साथ कांग्रेस पार्टी का उम्रदराज नेताओं पर भरोसा बरकरार है. हालिया सर्वे में आई रिपोर्टों के बाद युवाओं को टिकट में तवज्जो देने की संभावनायें फिर धराशाई होती दिख रही हैं.

ताजा उदाहरण महादेव सिंह खंडेला का है

बरसों से प्रदेश की राजनीति में चमक बिखेर रहे नेताओं को गहलोत के बयान से तगड़ा झटका लगा है. खास तौर से उन नेताओं को जो अपने बेटों को टिकट दिलाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे है. वे जनता के बीच खुद के लिए नहीं बल्कि अपने बेटों की उम्मीदवारी पुख्ता करने के लिए जनसमर्थन जुटा रहे हैं. ताजा मामला वर्तमान में गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त महादेव सिंह खंडेला का है. वे अपने बेटे गिरिराज के लिए सीट छोड़ने का जनता के बीच ऐलान करते दिख रहे हैं. खंडेला के बेटे गिरिराज वर्तमान में प्रधान हैं।. वे पूर्व में विधायक का चुनाव भी लड़ चुके हैं. महादेव सिंह खंडेला पिछला चुनाव निर्दलीय लड़कर जीते थे.

पार्टी को सिर्फ जीत चाहिए

कांग्रेस में नेता चाहे गहलोत के नजदीकी हो या फिर आलाकमान के उससे पार्टी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता. उसे राजस्थान में सिर्फ जीत चाहिए. गहलोत के बयान के बाद न केवल उम्रदराज नेता बल्कि उनके बेटों की उम्मीदों पर भी पानी फिरता दिख रहा है. बेटों की टिकट के लिए जयपुर से लेकर दिल्ली तक दौड़ भाग कर रहे नेता मन मसोस रहे हैं. आखिर सवाल जीत का है. इसलिए पार्टी उन्हें तो टिकट दे सकती है लेकिन उनके लाडलों को नहीं. क्योंकि सर्वे में वो जनता की पसंद बन पाने में नाकाम रहे हैं.

धारीवाल को ही चुनावी मैदान में उतरना पड़ सकता है

जाहिर है इस चुनाव में सियासत में विरासत की परंपरा पर काफी हद तक ब्रेक लग सकता है. नेता पुत्रों की लॉन्चिंग खटाई में पड़ सकती है. शांति धारीवाल के बेटे अमित धारीवाल पचास साल के हैं. जबकि धारीवाल की उम्र अस्सी बरस होने को है. लंबी सियासी पारी खेलने के बाद धारीवाल अब अपनी राजनीतिक विरासत बेटे अमित धारीवाल को सौंपना चाहते हैं. पिछले दस साल से राजनीति में सक्रिय अमित धारीवाल को हाल ही में प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव बनाया गया है. अब चर्चायें हैं कि धारीवाल राजनीति से रिटायरमेंट लेंगे और उनकी जगह अमित धारीवाल चुनाव लड़ेंगे. लेकिन सीएम गहलोत के बयान के बाद धारीवाल को ही चुनावी मैदान में उतरना पड़ सकता है.

डोटासरा बुजुर्ग नेताओं में ही इस चुनाव का भविष्य देख रहे हैं

जौहरीलाल मीणा 84 साल के हैं. वे अलवर जिले की राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ सीट से कांग्रेस के विधायक हैं. वे अब बेटे को चुनाव लड़वाना चाहते हैं. लेकिन उनके लिए भी अब चुनौतियां बढ़ गई हैं. सर्वे में जौहरी खुद ही चुनाव जीतते नहीं दिख रहे. अब बेटे की टिकट पर भी संकट मंडरा गया है. प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा बुजुर्ग नेताओं में ही इस चुनाव का भविष्य देख रहे हैं.

hindi.news18.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *