27 अगस्त को कोटा में 2 स्टूडेंट्स ने सुसाइड कर लिया। पिछले 8 महीनों में इस एक शहर से स्टूडेंट सुसाइड के 24 केस आए हैं। देशभर से लाखों की तादाद में स्टूडेंट्स कोटा में डॉक्टर और इंजीनियरिंग की कोचिंग करने आते हैं। इनमें से कई बच्चे अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते और इस प्रेशर को न झेल पाने पर उन्हें सिर्फ सुसाइड का ही रास्ता दिखता है।
आज जरूरत की खबर में सिर्फ कोटा के स्टूडेंट्स ही नहीं, उन सभी बच्चों के बारे में बात करेंगे, जो सोसाइटी और पेरेट्ंस के प्रेशर में खुद को साबित करने की होड़ में लगे हैं। इस सिचुएशन से निकलने का रास्ता क्या है ये जानेंगे।
कोटा में बढ़ते आत्महत्या के मामलों को रोकने के लिए कोचिंग प्रशासन, कोटा प्रशासन और पुलिस प्रशासन अलग-अलग पहल कर रहे हैं। इसी कड़ी में कोटा के एसपी चंद्रशील ने बच्चों को एक वीडियो संदेश भेजा है। जिसमें बताया कि प्लान A से ज्यादा बेहतर होता है प्लान B।
सबसे पहले वीडियो देखें जिसे एसपी चंद्रशील ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है…
सवाल: क्या है प्लान A और प्लान B?
जवाब: प्लान A करियर का पहला ऑप्शन होता है। इसका मतलब करियर की वो फील्ड जिसे आप सही समय आने पर चुनेंगे। उसमें सफल हाेने के लिए सही पढ़ाई और दूसरी तैयारी करेंगे। इसे और भी सरल भाषा में एक उदाहरण से समझते हैं। जैसे रोहन के पिता उसे पुलिस की वर्दी में देखना चाहते हैं। ऐसे में उन्होंने बहुत छोटी उम्र से यह तय कर लिया गया था कि वो यूपीएससी की परीक्षा देगा। इसकी तैयारी कैसे होगी, ये प्लानिंग भी की जा चुकी है। रोहन को भी यह पता है उसे पुलिस बनना है। यही फील्ड उसके लिए प्लान A है।
इसी तरह प्लान B वह करियर ऑप्शन है जो बच्चे के लिए दूसरी चॉइस होगी। यह इसलिए तय की जाती है कि अगर बच्चा पहले ऑप्शन में फेल हो जाए या उसकी रुचि कम दिखे तो इस दूसरे ऑप्शन में लक आजमां सकता है। प्लान बी में बच्चे के इंटरेस्ट को देखते हुए पेरेंट्स दूसरा ऑप्शन दे सकते हैं या बच्चा खुद अपना दूसरा करियर ऑप्शन चुन सकता है।
सरल भाषा में प्लान B, प्लान A फेल होने पर बैकअप ऑप्शन के तौर पर होता है।
सवाल: प्लान B की जरूरत क्या सबको होती है?
जवाब: बिल्कुल हर बच्चे के पास करियर से जुड़ा प्लान ए और प्लान बी दोनों ही होना चाहिए। याद रखें कि सबको अपनी पसंद का ऑप्शन नहीं मिल पाता और कई बार बच्चा गलत कदम भी उठा लेता है, इसलिए जरूरी है कि करियर के लिए दूसरा ऑप्शन जरूर तैयार रखें।
सवाल: प्लान A अच्छा होता है या प्लान B?
जवाब: कुछ लोगों के लिए प्लान ए ही वर्क कर जाता है तो कुछ के लिए नहीं। इसलिए यह तय करना थोड़ा मुश्किल है कि प्लान A अच्छा है या B। वहीं कोटा के स्टूडेंट सेल प्रभारी, सीआईडी सीबी एडिशनल SP ठाकुर चंद्रशील मानते है कि प्लान A से ज्यादा बेहतर प्लान B होता है।
भारत में बच्चे का करियर ज्यादातर मां-बाप डिसाइड करते हैं जबकि बच्चा कुछ और करना चाह रहा होता है। ऐसे में अक्सर प्लान A से पेरेंट्स की इच्छाएं और एम्बीशन्स जुड़े होते हैं। कई सिचुएशन में बच्चे का उस करियर को चुनने का मन नहीं होता और वह फेल हो जाता है। जबकि प्लान B में बच्चे की इच्छा होती है, ऐसे में बच्चे के सफल होनी की संभावना बढ़ जाती है।
सवाल: स्टूडेंट फेल होने पर या खुद को साबित न कर पाने की स्थिति में आत्महत्या की तरफ क्यों जाते हैं?
जवाब: इसके पीछे अलग-अलग कई वजहें हैं। जैसे-
पेरेंट्स की उम्मीदें: पेरेंट्स बच्चे से बहुत उम्मीदें रखते हैं। ऐसे में अगर बच्चा फेल हो जाता है तो वह निराश हो जाता है। खुद को किसी काबिल नहीं समझता और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है।
कॉम्पिटिशन: बच्चा जब अपने साथियों को बेहतर करते या पास होते देखता है तो वह खुद को कमजोर और हीन समझने लगता है।
समय और पैसे की बर्बादी: बच्चा कॉम्पिटिशन की तैयारी में कई साल का समय देता है, साथ ही मां-पिता के पैसे लगता जाता है। ऐसे में फेल होने पर उन्हें लगता है कि उन्होने खुद को साबित करने में समय और पैसा दोनों बर्बाद कर दिया है। इस वजह से बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है।
सवाल: कैसे समझें कि आपका बच्चा डिप्रेशन में है?
जवाब: अगर कई हफ्तों या महीने भर से आपका बच्चा इन 6 तरह से बिहेव कर रहा है तो वह डिप्रेशन में हो सकता है। इन लक्षणों पर ध्यान दें।
- बच्चा घर-परिवार और दोस्तों से दूर होकर अकेले ही रहना पसंद करता है।
- छोटी-छोटी बातों पर गुस्सानें लगता है।
- खुद से बात करने लगता है।
- लंबे समय तक खाता-पीता नहीं।
- पूरा टाइम कुछ सोचता रहता हो।
- नींद भी न आती हो।
ऊपर लिखी बातों के अलावा कुछ चीजों को ध्यान में रखें, वो क्या हैं इसे हम नीचे लगी क्रिएटिव से समझते हैं…

सवाल: बच्चा कई दिन से एबनॉर्मल बिहेव कर रहा है, तो पेरेंट्स इससे कैसे डील करें?
जवाब: साइकेट्रिस्ट के मुताबिक,
- बच्चे की परेशानी को शांति से सुने। भले वो गलत बोल रहा है लेकिन उस समय उससे बहस न करें।
- उसकी बातों को सुनते वक्त किसी रिजल्ट तक न पहुंचें।
- उसकी प्रॉब्लम को समझें और उसे एक्सेप्ट करें। यह न कहें कि ये तो कोई समस्या नहीं है।
- उसकी फीलिंग्स को समझने की कोशिश करें।
- उसके साथ टाइम स्पेंड करें।
सवाल: आपके पास कई केस आते हैं, ऐसे में बता सकते हैं कि बच्चे को किन बातों का डर रहता है, जिससे एंग्जाइटी हो सकती है?
जवाब: बच्चे को 5 बातों का डर रहता है, जिसकी वजह से वह एंग्जाइटी में रहता है-
- सामने वाला रिजेक्ट कर देगा
- लोगों के सामने बेइज्जती होगी
- सबके सामने बोल नहीं पाऊंगा/पाउंगी
- खुद को दूसरे की अपेक्षा कम समझना
- इन्सेक्योर फील करना
नोट: अगर ऊपर लिखी 5 बातों में से कोई 3 बातें भी आपमें हैं तो समझ लें, कि आपको सोशल एंग्जायटी डिसऑर्डर है। अपने डॉक्टर से इस बारे में कंसल्ट करें।
सवाल: किन वजहों से बच्चे को एंग्जाइटी हो सकती है?
जवाब: इसके कारण इस तरह से हैं-
- बचपन से दबाव में रहने पर।
- पेरेंट्स बच्चे पर जरूरत से ज्यादा कंट्रोल करते हैं।
- बच्चे जरूरत से ज्यादा शर्मीले या डरपोक होते हैं।
- मानसिक बीमारी के होने पर।
- बच्चे की लाइफ में कोई निगेटिव घटना हुई हो।
- पेरेंट्स में होने पर जेनेटिक भी हो सकती है।

सवाल: बच्चे के स्ट्रेस को कैसे दूर करें, जिससे वे बिना किसी टेंशन के फ्री होकर इंजॉय करते हुए पढ़ाई करें?
जवाब: 6 C मतलब कॉन्फिडेंस बिल्डअप, कैरेक्टर, कम्युनिकेशन, केयरिंग, कंपीटेंस और कॉन्ट्रीब्यूशन से बच्चों की टेंशन को दूर किया जा सकता है।
कॉन्फिडेंस- बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाना सबसे ज्यादा जरूरी है। पेरेंट्स के दबाव में बच्चा कोटा आ गया, पढ़ नहीं पा रहा। टेस्ट में नंबर कम आ रहे हैं तो वह स्ट्रेस में जा सकता है।
उसे यह विश्वास दिलाएं, यह फील्ड (मेडिकल या आईआईटी) उसके लिए है ही नहीं। वह दूसरे फील्ड में अच्छा काम कर सकता है।
बच्चे की रुचि के हिसाब से ही पेरेंट्स उसे उसी फील्ड में जाने की आजादी दें। जिससे बच्चे का मन खुशी-खुशी लगेगा और बेहतर रिजल्ट्स आएंगे।
कैरेक्टर डेवलपमेंट- कोटा में परिवार से अलग बच्चा अकेलेपन का शिकार होकर गलत रास्ते पर जा सकता है। उसे परिवार के संस्कारों, समाज के नियम-कायदे से जोड़कर रखना चाहिए।
पेरेंट्स की बात मानने, समाज के रीति रिवाज मानने की वजह और तरीका बच्चों को बचपन से ही समझाना चाहिए। जिससे उसके कैरेक्टर की क्वालिटी ग्रोथ हो।
कम्युनिकेशन- यह सबसे जरूरी है। बच्चे कोटा में पढ़ने आते हैं। इसलिए यारी-दोस्ती से दूर रहते हैं। खुद को रिजर्व कर लेते हैं। एक कमरे में दो स्टूडेंट वाला कल्चर खत्म हो रहा है। पेरेंट्स खुद अपने बच्चे के लिए सिंगल रूम की डिमांड करते हैं। ताकि बच्चा डिस्टर्ब न हो।
ऐसे में बच्चा अकेलेपन से घिर जाता है। बच्चे के साथ क्या हो रहा है, क्या परेशानियां आ रही हैं, इस पर कोई ध्यान नहीं दे पाता है। बच्चा अकेले ही अपनी सिचुएशन और परेशानी से जूझता है। इसलिए कम्युनिकेशन मैथड को डेवलप करना जरूरी है।
केयरिंग- अकेले रह रहे बच्चे के साथ किसी का इमोशनली कनेक्ट होना जरूरी है। जिससे वह अपने मन की बात शेयर कर सके।
वह बीमार होता है तो हॉस्टल-पीजी में उसे डॉक्टर को दिखाने वाला कोई नहीं होता। बीमार बच्चा अकेला जूझता है। केयर नहीं मिलेगी तो परेशानी बढ़ेगी। जरूरी है कि बच्चे को केयर मिले।
कंपीटेंस- बच्चे को जरूरी सुविधाएं समय पर मिलनी चाहिए। उसे बताया जाए कि किसी फील्ड में क्या स्कोप है।
एकेडमी प्रेशर से भी उसे बाहर निकालें। कोचिंग में हर हफ्ते होने वाले टेस्ट दो हफ्ते में एक बार होना चाहिए।
कॉन्ट्रीब्यूशन- बच्चे को अगर लगता है कि उसके होने, न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। परिवार उसकी परवाह नहीं करता। ऐसे में नंबर कम आए हैं तो अब जीकर क्या करूंगा।
ऐसा सुनकर या समझकर अवॉइड न करें। बच्चे को समझाएं कि वह परिवार के सभी सदस्यों की तरह ही है। साथ ही समाज का अहम हिस्सा है। वह देश-समाज के लिए कई काम कर सकता है।
बच्चों से छोटे-छोटे ऐसे काम जरूर करवाएं, जो समाज हित के हों। बच्चों को सामाजिक कामों से जोड़ें। बच्चे को यह एहसास दिलाएं कि वह परिवार, समाज और देश के लिए मायने रखता है।
Post Credit : – www.bhaskar.com